पाणिनीय व्याकरण का अनुशीलन | Panineeya Vyakaran Ka Anusheelan
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.41 MB
कुल पष्ठ :
518
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामशंकर भट्टाचार्य - Ramshankar Bhattacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाशिनीय व्याकरण का अलुशीलन उ्ध्छ मर पारिरुच्ेंच्ट अध्टाध्यायी के प्रकरण-क्रमों की संगति श्रष्टाध्यायी के प्रकरणी के क्रमिक स्थापन में कोई योक्तिकता है या नही यह यहाँ विवेचित हो रहा है । शास्त्रीय हष्टि से विचार करने पर यह विज्ञात हो जाता है कि भगवान् पाणिनि ने श्रष्टाध्यायी में प्रकरणो का क्रम पर्याप्त विचार पुर्वक ही रखा है। हम यह भी देखते हैं कि प्रकरणक्रम के विचार से व्याकरणगत श्रनेक गूढार्थों का ज्ञान हो जाता है। पूर्वाचार्यो को भी यह तथ्य ज्ञात था और कही कही उन्होंने भी प्रकरणबल पर विचार किया है । झष्टाब्यायी झौगर प्रकरण--विचार भारम्भ करने से पहले अर्टा- ध्यायी श्रौर प्रकरण-क्रम के स्वरूप के विषय मे कुछ विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। श्राचाये-पारिनि-रचित यह श्रष्टाध्यायी श्राठ श्रध्यायों में विभक्त है तथा प्रत्येक स्ध्याय में चार-चार पाद हैं । प्रत्येक पाद में शब्दशास्-सम्वन्धी विषय श्रनेक प्रकरणों में बाँटे गए हैं । प्रकरण एकार्थविच्छिन्न सूत्र- समुदाय अत प्रत्येक प्रकरण में एक ही विपय होना चाहिए तथा एक विषय अनेक स्थलों पर भाषित नही होना चाहिए ऐसा कहना भ्रसमत नहीं हे पर वस्तुस्थिति कुछ भिन्न है । प्राय. यह भी देखा जाता है कि एक ही विषय अष्टाध्यायी मे एकाधिक स्थलों पर उपन्यस्त है तथा श्रसबद्ध विपयो का क्रमिक स्थापन भी किया गया है । पाणिनि जैसे क्रान्तदर्शी प्रमाणशूत श्राचार्य ने इस प्रकार श्रसामस्वस्यपूर्ण व्यवहार अ्रसीवधानी से किया है ऐसा विश्वास करने की प्रवृत्ति नहीं होती । स्वय भाष्यकार ने पाणिति को विभल प्रतिमा तथा श्नवद्य यश की स्थान-स्थान पर प्रशसा की है तथा श्रर्वाचीननवैयाकरणों ने भी नतमस्तक होकर पाणिनि के प्रामाएय को माना है । जिस शाख्र का एक वर्ण भी निष्प्रयोजन नहीं है उस शास्त्र को प्रकरण-क्रमो में भ्रसामस्स्य तथा न्यायदोष है ऐसा कहना श्रनुचित प्रतीत होता है। यदि श्रष्टाध्यायी मे कही पर उपर्युक्त असमस्त्रसता दिखाई पड़ती है तो उसके लिये कोई गूढ कारण या रहस्य होगा ऐसा प्रचीत होता हैं। स्वय पत- क्जलि ने रपट शच्दो में कहा है-- यदि एक वाक्य तज्न इद च किमर्थ नाता- देशस्थ क्रियते ? कोशलमेतदातवायों दर्दयति यदेक वावय सल्नानादेदस्थ करोति कराए भ अल का के रा ही कि
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