हिंदी भाषा और उनके साहित्य का विकास | Hindi Bhasha Aur Unke Sahitya ka Vikas

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Hindi Bhasha Aur Unke Sahitya ka Vikas by अयोध्या सिंह उपाध्याय - Ayodhya Singh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“ | मम कट पा न्दाभाषा और उसके साहित्य का विकास । भयम खण्ड फ़यम प्रकरणा भाषा की परिभाषा भाषा का विषय जितना सर्स और मनोरम है, उतना ही गंभीर और कौतूदल जनक ।. भाषा मनुष्यकृत है, अधवा ईश्वरदत्त, उसका आविर्भाव क्रिसी काल विशेष में हुआ, अथवा वह अनादि है।. वह क्रमदा: विकसित होकर नाना रूपा में परिणत हुई, अधवा आदि कालसे ही अपने मुख्य रूप में वत्त मान है। इन प्रश्न का उत्तर अनेक प्रकार से दिया जाता है। कोई भाषा को इश्वर्दत्त कहता दं, कोई उसे मनुप्यक्रत बतछाता है । कोई उसे ऋ्मदा: घिकादा का परिणाम समानता है, और कोई उसके विषय में 'यथा पूवमकट्पयतत' का राग अलापता है।. में इसकी सीमांसा करूंगा । मनुस्मृतिक्रार लिखते हे सर्वेषांतु सनामानि कमा णि च प्रथक्‌ प्रथक्‌ । वेद चाव्देश्य एवादो इधक्‌ संस्थांश्व निमसे । १1९१! तपो वाचं रतिं चेव कामं च क्रोघसेव च । सृष्टि ससज चेवेमां स्रष्टुमिच्छन्रिमा प्रजा: 1१1९७) : ब्रह्मा ने मिन्न सिन्न कर्मा ओर व्यवस्थाओं के साथ साथ सारे नामों का निर्माण सृष्टि के आदि में चेदशब्दा के आधार से किया ।. प्रजा उत्पन्न करने की इच्छा से परमात्मा ने, तप, बाणी, रति, काम , और क्रोध को उत्पन्न किया ।




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