श्रीमद्वाल्मीकि - रामायण | Sreemadmalkiya Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ कु विद नदन्तमुस्क्षिप्य बलेन राक्षसम्‌ ॥ २९. ॥ बध्यतां प्रेकष्य महासुरस्य तो शितेन शखेख तदा नरपषेभी | चात्यर्थ पिलखषनों बिले विराघस्य वर्ष प्रचक्रतु ॥ ३० ॥ है मत्युमात्मनः प्रस्म रामेण ययाथमीप्सित । रिषा स्वयं न में वध शखकृतो भवेदिति ॥ ३२१ ॥ षिने कूता मतिस्तस्य बिलपवेशने । हु कणों विराधमुर्व्यं मदरे निपात्य तम्‌ | ननन्दतुर्वीतभयो महावने शिला मिरन्तद्घतुश्र राश्सस्‌ ॥ ३३ ॥ ततस्तु तो काश्नचित्रकामुकों निहत्य रक्त परिग्रद्य मेथिलीस्‌ । विजइतुस्ती मदितों महावने दिवि सिथितों चन्द्रदिवाकराबिव ॥ ३४ ॥ इत्याष श्रीमद्रामायखे वास्मीकीय आदिकाव्येडररयकाणडे चतुर्थ खर्ग ॥ ४ ॥ लादा ॥ २७ ॥ गढ़ेमें गाड़नेके लिए रामचन्द्रने उसका गला छाड़ दिया शंकके समान के कान मयानक शब्द करते हुये उस राच्सका उनलोागोंने गढ़ेमें डाल दिया ॥२८॥ रेवाले तथा रखमें स्थिर दानां राम झोर लददमणने प्रसन्नतापूर्वक युद्धमें भयानक श्र क शब्द करनेवाले उस राक्षसका उठाकर गढ़में फंकदिया ॥ २४ ॥ नरश्रें्ठ राम श्रौर लदमखने देखा कि यहद॒ तीखे चाखांसे नहीं मरेगा तब नितान्त निषुण वे दानां भाइयेंनि बड़े प्रयत्से उस उसमें उसे डाल दिया ॥ ३० ॥ स्वयं विराध भी काननचारो रामचन्द्रके हाथा झपनी न उसने रामचन्द्रसे यह यथाथं बात कहदी थी कि शस्त्रोंके द्वारा मेरी सुत्युन उसकी बात सुनकर ही रामचन्द्रने उसे गढ़ेमें डालनेका विचार बिश्यित तमचन्द्रने बड़ा बल लगाकर उस राक्षसके गढ़ेमें ढकेला उस समय उसने समस्त वन- # ३९ ॥ उस विराघका ऐ्रथिवीमें गढ़ेम्ें डालकर राम ओर लद्मण बड़े प्रसन्न इप | भय जाता रहा ।. उस गढ़ेदा उन लागोंने पत्थरोंसे पाट दिया ॥ ३३ ॥ चे दोनों हुए धर चुष धारण किये राक्षसका मारकर जानकीका लेकर उस महावनमें चरण करने लगे जिस प्रकार झाकाशमे चन्द्रमा और सूर्य विचरण करते हैं ॥३४॥ परकाण्डका चौथा सर्ग समाप्त ॥४॥




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