स्वप्नसिद्धि की खोज में | Swapnasidhi Ki Khoj Me
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
103.38 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उतर पड़े । जैसे श्राकाश के ऊपर हम खड़े हों, इस प्रकार नीचे बिजली की
बत्तियाँ तारों की तरह प्वमक रही थीं | बातनवीत करते-करते हम लोगों के
बीच चर्चा छिंड़ गई कि स्त्री और पुरुष के बीच मित्रता हो सकती है या
उन
पुरुष स्त्री मेँ केवल विषय-तृत्ति खोजता है, वह स्त्री के साथ समानता
की भूमिका पर मेंत्री नहीं रच सकता, पुरुष ख््री को तुच्छ समभकता है--
ऐसे, पढ़ी-लिखी स्त्रियों कों सदा प्रिय लगने वाले, विषयों की चचां लीला
छुड़ती थी ।
1 कोइ सित्र
“प्तुस्हें पुरुषों का बहुत कट श्रचुमव हुआ मालूम होता हे । कोई
द्रोही तो नहीं हो गया १ मित्रता टूट गई हो, तो लाशों जोड़ दूँ,” कुछू
मजाक मैं मैंने कहा |
लीला बाबिन की भाँति मेरी ओर घूसी ।. “सु, किसी की मदद या
मेहरबानी नहीं चाहिए,” उसने कहा । मे श्पनी मूखता तुरस्त समक में
रा गई । 200 50 मैंने कहा । मिनट-मर कोई न बोला श्र
दम हँस पड़े । बिना बोले हम एक-दूसरे से परिचित हो गए. हैं--यह
प्रतीति होते ही क्षण-मर के लिए हमने श्ानन्द-मूच्छां का अनुभव किया
श्रौर वहाँ से हम लोग लौट द्ञाए ।
यह भान होने से म॒भे बड़ा दुःख हुआ । “जीण मन्दिर * का पहला
)
मनका मैंने लिख डाला । इसमें, जी मन्दिर के रूप मैं मैंने नये यात्री से...
रोकर विनय की थी कि तू मेरी युंगों की शान्ति को मंग न करना । यह लेख.
मेने लीला को दे दिया | रन
अपनी अूबंता के काल में हृदय में उतारा टुआा नाद. अब
केसे सुन सकूँगा ? उस नाद में मोदद है, उत्साह हैं, मद है;
_ पागलपन है। मुझसे अब वह नहीं सुना जायगा । वह नाद..
'विस्सत प्रतिध्वनियों को जगाएगा । इससे मेरे मनोरथा की भस्म
छु परिवर्तन के साथ छुपी है ।
१. लीलावती, सुँ शी-+'जीवन माँ थी जड़ेली' में यह लेखमाला
हा ही + ही गः
द ही ड गे ही
पर व दही 1
मे + हे भर
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