स्वप्नसिद्धि की खोज में | Swapnasidhi Ki Khoj Me

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Swapnasidhi Ki Khoj Me by कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उतर पड़े । जैसे श्राकाश के ऊपर हम खड़े हों, इस प्रकार नीचे बिजली की बत्तियाँ तारों की तरह प्वमक रही थीं | बातनवीत करते-करते हम लोगों के बीच चर्चा छिंड़ गई कि स्त्री और पुरुष के बीच मित्रता हो सकती है या उन पुरुष स्त्री मेँ केवल विषय-तृत्ति खोजता है, वह स्त्री के साथ समानता की भूमिका पर मेंत्री नहीं रच सकता, पुरुष ख््री को तुच्छ समभकता है-- ऐसे, पढ़ी-लिखी स्त्रियों कों सदा प्रिय लगने वाले, विषयों की चचां लीला छुड़ती थी । 1 कोइ सित्र “प्तुस्हें पुरुषों का बहुत कट श्रचुमव हुआ मालूम होता हे । कोई द्रोही तो नहीं हो गया १ मित्रता टूट गई हो, तो लाशों जोड़ दूँ,” कुछू मजाक मैं मैंने कहा | लीला बाबिन की भाँति मेरी ओर घूसी ।. “सु, किसी की मदद या मेहरबानी नहीं चाहिए,” उसने कहा । मे श्पनी मूखता तुरस्त समक में रा गई । 200 50 मैंने कहा । मिनट-मर कोई न बोला श्र दम हँस पड़े । बिना बोले हम एक-दूसरे से परिचित हो गए. हैं--यह प्रतीति होते ही क्षण-मर के लिए हमने श्ानन्द-मूच्छां का अनुभव किया श्रौर वहाँ से हम लोग लौट द्ञाए । यह भान होने से म॒भे बड़ा दुःख हुआ । “जीण मन्दिर * का पहला ) मनका मैंने लिख डाला । इसमें, जी मन्दिर के रूप मैं मैंने नये यात्री से... रोकर विनय की थी कि तू मेरी युंगों की शान्ति को मंग न करना । यह लेख. मेने लीला को दे दिया | रन अपनी अूबंता के काल में हृदय में उतारा टुआा नाद. अब केसे सुन सकूँगा ? उस नाद में मोदद है, उत्साह हैं, मद है; _ पागलपन है। मुझसे अब वह नहीं सुना जायगा । वह नाद.. 'विस्सत प्रतिध्वनियों को जगाएगा । इससे मेरे मनोरथा की भस्म छु परिवर्तन के साथ छुपी है । १. लीलावती, सुँ शी-+'जीवन माँ थी जड़ेली' में यह लेखमाला हा ही + ही गः द ही ड गे ही पर व दही 1 मे + हे भर




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