तुलसी शब्द भण्डार | Tulsi Shabd Bhandar

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Tulsi Shabd Bhandar by कौशलेन्द्र सिंह भदौरिया - Kaushlendra Singh Bhadauria

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहुत पतित भवनिधि तरे बिनु तरिबिनु बेरे । कृपा कोप सतिभायहू, धोखेहु -तिरछेहु राम] तिहारेहि हेरे 1। चिवनि .सौघी लगे, चितइये सबेरे । तुलसिदास अपनाइये,कीजै न ठील अब जिवन अवधि अति नेरे ।। उपयुक्त पद में जिवन-अवधि अति नेरे' के संकेत से यह परिणाम निकलता है कि उक्त कंथन ने कम से कम साठ वर्ष की अवस्था के पूर्व न किया होगा। ' रामगीतावली' का सम्पादन उसके बाद किसी समय 69-70 वर्ण की अवस्था में अर्थात सं0. है 1658 में लगभग किया गया होगा, जो उचित प्रतीत होता है। पं0 रामनरेश त्रिपाठी के अनुसार- ”इसकी रचना कवि की एक बैठक की नहीं जान पड़ती। सम्भव है, सं 1640 में इसके कुछ पद बने हों और फिर सबको मिलकार सं0 1666 के बाद पत्रिका पूर्ण कर दी गयी हो। इसमें काशी की महामारी का संकेत नहीं ; क है। इससे निश्चय ही यह संवत्‌ 1669 के पहले बन चुकी थी। 'विनयपत्रिका' को तुलसीदास ं के हाथ से सं0 1668 क आसपास वर्तमान रूप प्राप्त हुआ है । 'रामगीतावली को ' विनयपत्रिक' का रूप कब दिया गया, यह कहना असम्भव है । रामनरेश न्रिपाठी ने उसकी अंतिम सीमा सं0 1668 निर्धारित किया है, क्योंकि उसमें. काशी की महामारी का उल्लेख नहीं है। 'विनयपत्रिका' एक आत्मपरक काव्य है, अतः विनय के पदों में महामारी का उल्लेखा होना आवश्यक नहीं है। उसमें तो आत्मवेदना की जे । - विनयपत्रिका- पद 273 : 2- तुलसीदास और उनका कविता, पृष्ठ 229.




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