श्रीमद वाल्मीकीय रामायण में नीति एवंम आचार | Shrimad Balimakaya Ramayan May Niti Evm Acahar

Shrimad Balimakaya Ramayan May Niti Evm Acahar by क्षमा द्विवेदी - Kshama Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस दृष्टि से यदि हम प्रारम्भिक काव्य परम्परा से आधुनिक संस्कृत काव्य परम्परा का अवलोकन करें तो हमें यह दिखाई देगा कि प्रारम्मिक काल से ही वैदिक ऋषि और विचारक साहित्य सृजन करते रहे और इससे वे जिस प्रकार की अपेक्षा करते रहे उसका उद्देश्य मनुष्य के जीवन में शुचिता प्राप्त कराने का भी था। इसीलिये प्रारम्भिक साहित्य वैदिक साहित्य में भी नैतिक प्रत्ययों के उन सन्दर्भों का उल्लेख किया गया है जो कहीं न कहीं मनुष्य को श्रेष्ठ मार्ग पर चलने के लिये उत्प्रेरित करते हैं। जैसे कि प्रारम्भ में यह सड़ेत दृष्टिगत होता है कि तब ऋषियों ने मनुष्य जीवन में तप को अधिक महत्ता दी थी और वहाँ पर यह कहा गया था कि कऋत्‌ और सत्य . तप के ही अंग हैं। यही इस सृष्टि में सर्वप्रथम उद्भूत हुये। अर्थात्‌ जब ..... इस पृथ्वी पर प्रजापति के द्वारा तप का आचरण किया गया तो उस तपस्या के द्वारा सर्वप्रथम ऋत्‌ और सत्य प्रकट हुए। यह ऋतु और सत्य और कुछ नहीं था; मनुष्य जीवन के सगूचालन के _ लिये एक ऐसा सड़ेतत था जिसे उचित और सम्मानित के रूप में कहा जा . सकता था। बाद में सत्य को यथार्थ, वास्तविकता और ईमानदारी के रूप में है. जाना गया; जबकि ऋत्‌ को नैतिक नियमों के रूप में व्याख्यात किया गया। १... ऋतं च सत्य चाभिधातपसो$्ध्यजायत्‌ । ऋतु १०/१९०/१ थे २.. सं. श. कौ. पृ० १६०, २६५; हि. स., पृ. १०४




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