सरल मनोविज्ञान | Saral Manobigyan
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
240.01 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मय कि . . . सरक-मनोविज्ञान
है। कर राजनीतिज्ञ झपने सन की बात को - गुप्त रखता हैं और दूसरे के
नयदलंसपपाकलमिकमथ न 4. 7 नम द्सीं
को...जाननें की कोशिश करता है । इसी तरह वह श्रपने वास्तविक
हेतु को. जितना श्धिक दूसरों से छिपाये रख . सकता है, उतना ही चतुर
समभा जाता है । इस प्रकार के काय करने के. लिए मनोविज्ञान का. श्रध्ययन
परम त्वश्यक है |
मनोविज्ञान का अध्ययन बोलकों के. लालन-पालन श्र उनकी शिक्षा में
बडा ' लाभकारी - सिद्ध हुआ है 1. बाल-मनोविज्ञान तर. शिक्षा-मनोविज्ञान क्री
उत्पत्ति तथा प्रचार मनोविज्ञान की. मौलिकता को सिद्ध करते हैं । शआधनिक
अत्येक शिक्षित माता को बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान आवश्यक समझा जाता है ।
शिन्ता-विज्ञान के विकास में . मनोविज्ञान की ही प्रधानता
तक बालक के. स्वभाव का. व्ययन भलीमाँति नहीं . कस्ता; उसकी
को नहीं जानता, तन तक आपने पाठ्य विषय को रोन्यक नहीं बना. सकता.
विंघय में बालकों की रुचि नहीं होती
'विषय को याद करने में उन्हें कठिनाई होती हैं । यदि अरुचिकर विषय याद भी
हो जावे तो बालक ऐसे विषय को शीघ्रता से भूल जाता है ।
वे उस पर ध्यान नहीं लगा सकते । ऐसे
.. मिन्नभिन्न प्रकार के बालकों की रुचि भो अलग-ग्रलग होती हैं। इसी
तरह बालकों की बुद्धि से भी भेद होता है । शिक्षा को उपयोगी बनाने के
लिए, श्रध्यापक को बालकों की रुचियों का -शध्ययन करना तथा उनके बुद्धि-मेद
का पता. चलाना अति श्ावश्यक है ।. जो. पढ़ाई एक. बालक के लिए. श्ति...
लाभकारी हो वही दूसरे को हानिकारक सिद्ध हो सकती है । मनोविज्ञान के...
ज्ञान के अभाव में सभी ' बालकों को एक साथ बैठाकर एक-सी ही शिक्षा दी
जाती है। इस प्रकार बालकगण शिक्षा से उतना. लाभ नहीं उठाते जितना...
उनके स्वभांव के अध्ययन के - पश्चात् दी गई शिक्षा से उठाते हैं ।
सेज्ञानिक रूसो का यह मत अब सबमान्य है. कि शिक्षक को न सिफू,
'पाव्य-विषय को. ही...जानना....लाहिए,
्ाजकश्य जधान कलर, पक
प्रशाधएकरा# प
कक, पक दर
:. 'पहचानना - चाहिए... बालक _ के जीवन की श्रनेक समस्याएँ मनोविज्ञान के .
ई जा सकती हैं कितने ही बालक उदश्ड होते हैं श्र कर
कितने. दी श्रन्यमनस्क होते हैं । इनके कारणों का. पता उनके जीवन : के
ऊपरी अध्ययन से. नहीं चलता । इसके लिए उनके मन का. पूरण अध्ययन
नकद नतकशकष
७ न लक पे
“अ्यन
उपपने थे
म दर
निया ह
किन्तु. ब्राहक को. भी भली प्रकार.
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