सरल मनोविज्ञान | Saral Manobigyan

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Saral Manobigyan by डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मय कि . . . सरक-मनोविज्ञान है। कर राजनीतिज्ञ झपने सन की बात को - गुप्त रखता हैं और दूसरे के नयदलंसपपाकलमिकमथ न 4. 7 नम द्सीं को...जाननें की कोशिश करता है । इसी तरह वह श्रपने वास्तविक हेतु को. जितना श्धिक दूसरों से छिपाये रख . सकता है, उतना ही चतुर समभा जाता है । इस प्रकार के काय करने के. लिए मनोविज्ञान का. श्रध्ययन परम त्वश्यक है | मनोविज्ञान का अध्ययन बोलकों के. लालन-पालन श्र उनकी शिक्षा में बडा ' लाभकारी - सिद्ध हुआ है 1. बाल-मनोविज्ञान तर. शिक्षा-मनोविज्ञान क्री उत्पत्ति तथा प्रचार मनोविज्ञान की. मौलिकता को सिद्ध करते हैं । शआधनिक अत्येक शिक्षित माता को बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान आवश्यक समझा जाता है । शिन्ता-विज्ञान के विकास में . मनोविज्ञान की ही प्रधानता तक बालक के. स्वभाव का. व्ययन भलीमाँति नहीं . कस्ता; उसकी को नहीं जानता, तन तक आपने पाठ्य विषय को रोन्यक नहीं बना. सकता. विंघय में बालकों की रुचि नहीं होती 'विषय को याद करने में उन्हें कठिनाई होती हैं । यदि अरुचिकर विषय याद भी हो जावे तो बालक ऐसे विषय को शीघ्रता से भूल जाता है । वे उस पर ध्यान नहीं लगा सकते । ऐसे .. मिन्नभिन्न प्रकार के बालकों की रुचि भो अलग-ग्रलग होती हैं। इसी तरह बालकों की बुद्धि से भी भेद होता है । शिक्षा को उपयोगी बनाने के लिए, श्रध्यापक को बालकों की रुचियों का -शध्ययन करना तथा उनके बुद्धि-मेद का पता. चलाना अति श्ावश्यक है ।. जो. पढ़ाई एक. बालक के लिए. श्ति... लाभकारी हो वही दूसरे को हानिकारक सिद्ध हो सकती है । मनोविज्ञान के... ज्ञान के अभाव में सभी ' बालकों को एक साथ बैठाकर एक-सी ही शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार बालकगण शिक्षा से उतना. लाभ नहीं उठाते जितना... उनके स्वभांव के अध्ययन के - पश्चात्‌ दी गई शिक्षा से उठाते हैं । सेज्ञानिक रूसो का यह मत अब सबमान्य है. कि शिक्षक को न सिफू, 'पाव्य-विषय को. ही...जानना....लाहिए, ्ाजकश्य जधान कलर, पक प्रशाधएकरा# प कक, पक दर :. 'पहचानना - चाहिए... बालक _ के जीवन की श्रनेक समस्याएँ मनोविज्ञान के . ई जा सकती हैं कितने ही बालक उदश्ड होते हैं श्र कर कितने. दी श्रन्यमनस्क होते हैं । इनके कारणों का. पता उनके जीवन : के ऊपरी अध्ययन से. नहीं चलता । इसके लिए उनके मन का. पूरण अध्ययन नकद नतकशकष ७ न लक पे “अ्यन उपपने थे म दर निया ह किन्तु. ब्राहक को. भी भली प्रकार.




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