प्रमाण नय तत्त्वालोक | Parmaan - new - Tattayalok

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Parmaan - new - Tattayalok by शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) [ प्रथम परिच्छेद चिदंचन--यहाँ भी स्व-व्यवसाय का च्टान्त के साथ समथधन केया गया हैं । जो ज्ञान वाद्य पदाधे-घट आदि को जानता हैं वही अपने-आपको भी जान लेता है | हमें चाह्म पदाध का ज्ञान हों जाय केतु यह ज्ञान न हो कि “हमें चाह्म पढाथ का ज्ञान हुआ हू ऐसा कभी सम्भव सहीं है । चाह्म पदार्थ के जान लेने को जब तक हम स नान लेंगे तब तक चास्तव मे वाद्य पढाय॑ का जानना संभव नहीं हैं । नेसे सूच के प्रकाश द्वारा घट च्यादि पदार्थों को जच हम देख लेते हूं तच सूच ले प्रकाश को भी अवश्य देखते हे, उनी प्रकार जय ज्ञान द्वारा लिसी पदा य को जानने हैं तब ज्ञान को भी अवश्य जानते हैं जस सूय चे प्रसार को दग्वन के लिए इसरे प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती उनी प्रचार छान को जानने कं लिए दूसरे पान की च्ाव- 2. रू हज च्सदस्डा सही न्त्ता मा न पकार ज्ञान लिन प्चन्ता नहा हाता । जंस सूय अनदसखा नहा रहता उसों प्रकार ज्ञान का ज्ञानस्प प्रमेयाव्यभिचारिस्व प्रामाएयम्‌ ॥ प्रामाएयम्‌ ॥१८॥। जना ह उस चना हो जानना, यहीं ्तान थी प्रमागातना है 1 रह की न स्व हैं यान य्सय पदाध वा चधाप थक रूप से न जानना-जसा नो चला जानना--पयप्रसाणता है | नौ वस्तु लगी है प्स उसी रूप से जानना शान जी प प्मारयता हे सपार चन्य रूप से जानना चप्रसाणता ₹ 1 प्साणन्या था यह भेद धघाए पटार्यों वी सपना सूसभना




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