अन्तरिक्ष यात्रा की कहानी | Auntrichha Yatra Ki Kahani

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Auntrichha Yatra Ki Kahani by आचार्य विद्यासागर - Acharya Vidyasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ प्रज्वलन का नियन्त्रण किया जा सकता है । भ्र्थात्‌ इसे किसी भी समय बंद किया जा सकता है श्र श्रतिरिक्त शक्ति की जरूरत होने पर बाद में पुनः चालू किया जा सकता है । अ्रपोलो श्रन्तरिक्ष यान को चन्द्रमा के पास पहुँचाने के लिए यही मुख्य परिचालन प्रणाली तैयार की गयी है स्वयं श्रपोलो श्रन्तरिक्ष यान तीन मुख्य भागों में बंटा होता है जिन्हें माडयुल या कक्ष कहा जाता है । इसका लगभग 18 फुट व्यास होता है ५8 टन भार होता है श्रौर संकटकालीन बचाव मीनार सहित लगभग 80 फुट ऊँचा होता है | बचाव मीनार का एक ही काय है । यान छोड़ने के लिए को जाने वाली उल्टी गिनती के श्रन्तिम क्षणों में मंच पर या उड़ान के प्रारं- भिक क्षणों में कुछ गड़बड़ी पदा हो जाये तो मीनार में रखे ठोस ईंधन से चलने वाले शक्तिशाली राकेट जल उठेंगे श्रौर सैटनं-5 गतिवद्धंक के सिरे पर रखी मानवयुक्त संपुटिका कंपस्यूल को ग्रलग करके इसे हवा में हजारों फुट ऊँचे धकेल देंगे आर खतरे से बाहर कर देंगे। हवाई-छतरियाँ इसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर लौटा लाएगी । बचाव मीनार के बिना अपोलो झ्रन्तरिक्ष यान श्रपने-श्राप में पाँच मंजिली इमारत जितना ऊ चा होता है । ऊपर से नीचे की श्रोर इसमें तीन कक्ष माड्यूल इस प्रकार होते हैं श्रादेश कक्ष सेवा कक्ष श्र चाँद्र भ्रमण कक्ष । श्राखिरी कक्ष को आराम तौर पर बग कहा जाता है । आ्रादेदा कक्ष दांकु के आकार की दाबानुक़ुलित संपुटिका होता है जोकि तीन अन्तरिक्ष यात्रियों को चन्द्रमा के पास तक यात्रा पर ले जाता है श्रौर बाद में उन्हें पृथ्वी पर वापस ले भ्राता है । इसके भीतर चन्द्रमा की शोर सानवयुक्त उड़ान के लिये जरूरी यन्त्र नियन्त्रण




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