कबीर पंथी - शब्दावली | Kabir Panthi - Shabdawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
159.51 MB
कुल पष्ठ :
1219
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
Swami Yuglanand wrote 42 books including Kabir ki Sakhi(1898), Anurag Sagar(1914-Shri Venkteshwar Press,Bombay) whichwas later translated in English (1983)and published by Sant Bani Ashram, New Hampshire(USA) in1983 as Ocean of Love.
His complete biography is given by Shri Yugalanand Bihari himself in introduction of the book publshed byVenkateshwar Press, Mumbai.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ प्रस्तावना । न्येटर सदन सडि सदन मैट सदन ऑन नि टन सडिगफीटन पैग वैदिक सपा कैंप और और किंग कर फैन कार फिर फेर अहमदाबादसे बुढानेका आयोजन किया किन्तु उस समय विशेष नियम पाठन करते हुए विश अवस्थाम र्हनक कारण में डा चम्चईं नहीं आसका इसलिये कबीर मन्शुर छपनेका काम कुछ दिनतक बन्द रहा । पश्चात् मर नियम अनुष्ठानका समय प्रा हुआ और मैं बम्बई आकर घाटकोपरपर ठहरी । तब श्ीयुत मे कनजी कुबेर पेंटर ओर श्रीयुत सेठ ख़ेमराजनी ऋमशः मुझसे मिठे तथा अनु- रोघकर ... वम्बई लेआये और कबीरमन्युरकी छपाइ आगे चली । जा कुड़ पाड़ छव चुकाथा वह एक एस सज्नद्वाग असुवाद कराया गया था जिसको घर्मकी गन्धभी नहीं लगी थी । इसलिय आप कता तो इस चातकी थी कि सच फिर्से युद्ध करके दु्ारा उपाय जाय किन्तु इसमें सेठजीकों बहुत चड़ी हानि उठान पढ़ती थी इस कारण मकनजीकां समझा झाकर परिशेष २. फोम जिनमे चहुत अशुद्धियों थी छपवाकर शाप बंसहीं रखना पड़ा । जा आजतक पेंसदी हैं इस भेदकों न जाननेवाले कतिपय महात्माअतनि मर ऊपर कटोझन कर पत्रोमें लेख भी छपवाये हैं किन्तु मेंन उन्हें अनजान जानकर उत्तर तक नहीं दिया हूं । अब मेंने फिर्से कचीरसन्दारकों हायमें लिया हे और मूठसे बराचर मिलाकर दीका टिप्पणी और प्रमार्थसिहित तय्यार किया है सद्युरुकी कप होंगी ता. थाड नाम प्रकाशित भी हो जायगा कबीरमन्यूरके पश्चातही कबीरोपासनापद्धातिं मकन जी कुबेर पन्टरक अनुरोधस छिख़ना पढ़ाथा । उस समय श्री १०८ पंथी उम्र- नाम साइबकी संवाम कुद्रमालू जानेकी जल्दी थी क्योंकि इन्दीर कवीरमान्दिरके भूत पूवें आचाये संदगुरु श्रीमइंत शाम्सु दासजी साइ- बने वहां चलनेकी सूचना दीयी आर भुसावलमं मिलनेकी बात निश्चित होगयी थी । इस छिये कबीरोपापनाकें छापनेमें इतनी जल्दी की गयी कि केवल आठ दिनमेंद्दी ग्न्यकी लिखाइ छपाइ सब इोगर्य और मैं कुदरमाठको रवाना हो गया । पंश्री उम्रनाम साइबका दर्शन
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