पाप की ओर | Pap Ki Aur

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Pap Ki Aur by प्रताप नारायण श्रीवास्तव - Pratap Narayan Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(1९ ) निर्भा रद्द गया । संप्रहि-काल में टर्की तो इस घात का उ्वलेत उदा- हरण टी है । जय से वोर-शिरोमणि कमाक्षपाशा ने छापने हाथों में शाप्तन की चागडोर ली है; तभी से टर्की की उम्ति दिन दूनी झौर रात 'दौगुवी हो रही दे | श्रतएव यदि धर्म राज्य के साथ घाँघ दिया जाप, तो वद-देश कभी उच्तिं नहीं कर सझता । ठीक यही दशा घाजकन हमारे देश की शोर एक शताठ्दी एवं जापान 'टी थी । जापान घपनी धार्मिक विमूढ़ता में इतना पंपा हुआ था कि एक 'घर्स की साननेवाली जाति दूपरी घाति को खाए जाती थी । 'ौर '्रशांति के कारण देश की उन्नति हो दी न सकती थी । शोगुन-राल-वंश के काल में लब शांति स्थापित हुई, तो देश की न झोना झचश्य श्राश्चर्य की बात थी । चाद में रूस शरीर जापान- युद्ध के पश्चाव जापानने ऐसी उन्नति की कि देखनेवाले दूंग रह जाते हैं । ससकी इस उच्नति का सुख्य फारण था देश से घार्तिक कुपुश्कारों का लुप्व हो जान । जापान की धार्मिक इृढ़ता पश्चिम के संयोग से धीरे-घोरे कम होने लगी, और 'ाजकज्ञ तो जापानी श्रपने धार्मिक विचारों में इचने हैं कि शायद उनके यददीं कोहे भी काम कैवन्त घमें के घटाने से रु नहीं रहता । ये संसार फे राष्ट्र के साथ रोटी-नेटी का. ब्यवद्दार कर सकते दें--यदि ऐपी विसूढ़ता मी कुछ भी है, तो जापान की उन्नति के साथ-साथ चह भी जोप हो रही है । फिंतु हमारा देश ! इमारे देश की दशा कुछ श्र दी है, जो फमी भो झपने को से मुक्त नदीं कर सकता । धर नव वर यद दशा रहेगी, तब सके भारत की भी नहीं हो सकती । ध्रस्तु । शोयुन-राज्य-फाद से लापान की श्रार्पिक, * सामाजिक, भर साहित्यिक उन्नति भारंभ होती है । छोग खाने-पीने से खुश थे, श्ीर सानंद जीवन व्यदीत करते थे | खून से भरी हुई तक्त-




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