इस्लाम का विष - वृक्ष | Islam Ka Vish Vrksha

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Islam Ka Vish - Vriksh by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) रली फा-अवृब कर नननन घर गन मुद्दम्मद साहब ने स्रर्यु के समय झपना कोई उत्तराधिकारी न खुना था | इस कारण उसकी खत्यु होते ही स्वेत्र इल चल मच गई । इस पर ब््रसास्स इच्नेज़ेद ने इस्लाम का कड़ा झायशा के दर्वाज़े पर खढ़ा कर दिया । और हथियार बन्द पहरेदार नियत कर दिये । धब यह विचार चला कि छफिसे उत्तराधिकारी चुना जाय । झववकर, उसर, उस्मान, श्र झ्ली ये चार झादमी गद्दी के झधि- कारी' समझे गये । खानदान श्ौर योग्यता को दृष्टि से अली का हक़ था पर कुछ लोग अववकर को कुछ उमर को और कुछ उस्मान को चुनना साहते थे | इसके निणंय के दिये पंचायत बुल्ञाई गई । उसने यह निणंय किया कि ख़लीफ़ा मफ़्ता के कुरेशों में से बनाया जाय श्रौर मन्त्री झन्सारी बनाये लाया करे' । इस निश्चय के अनुसार थबू 'झबीदा और उमर में से कोई भीं ़ल्नीफ़ा हो खकता था । पर जब इसपर रूगढ़े होने लगे तो उमर ने आगे बढ़कर अधूधकर को सलाम किया और उनका हाथ चूम कर कहां झाप इस सबसे बचे, योग्य व वुद्धिमान्‌ हैं इसलिये आपके रइतें कोई छादमी खलीफा नहीं बनाया जा सकता । इस प्रकार अवृवकर प्रथम, ख़लीफ़ा चुना गया सत्यु के समय मुहम्मद साहब का बिघार सीरिया और फारस कें विजय का था और वे इसको तेयारो कर चुके थे। झवूबकर नें ग़लीफा दोसे हीं नें शललाखें' प्रथक्षित को:-- बन




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