कबीर ग्रन्थावली | Kabir Granthavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : कबीर ग्रन्थावली  - Kabir Granthavali

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about माता प्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupt

Add Infomation AboutMataprasad Gupt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६ झा तश इन्ठु अरक ताढ़िम अंग सायर छांड़े लहदरि सुवाह || पद मेड़ता चले. पारोंठो पमुद्दे बे सुर सरि अवाह ॥ है ॥ सोम सुर सामेंद्र प्रता सुध घट अंग । राम कियी सृत शासि धरम रसि पु तोथा मसिलि पूच श्रसंग ॥ ४ ॥ हे राठोड़ रासदास यदि तू सृत्यु के भय से युद्ध स्थल छोड़ वार चल्ा जाता है तो चन्द्रमों तीदण किरणें और सूचे शीतलता घारण कर लेता है समुद्र स्थिर होजाता हे गौर गंगा का प्रवाह पश्चिम की ओर मुड़ जाता है. । हे जयमल के पुत्र थदि तू युद्ध स्थल त्याग कर घिमुख होजाता है. तो चन्द्रमां झाग उगलने लगता है. और सूर्य शीतलता धारण करने लग जाता है । समुद्र अपनी सुन्दर उभियां छोड़ देता है और गंगा के जल का प्रवाह विपरीत दिशा सें हो जाता है । हे मेड़ता नरेश यदि तू रणांगण से शत्रुओं को पीठ दिखा कर युद्ध-भूमि से पलायन कर जाय तो चन्द्रमों तेज को धारण कर लेता है और सूये शीत की प्रकृति का वन जाता है समुद्र लहर-हीन दोजाता है और गंगा उल्टी वहने लग जाती है | रासदास अपने पूर्वजों की भाँ ति स्वामी धर्म का पालन कर युद्ध में शौये प्रदर्शित करता हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ । चन्द्र सूर्य समुद्र ौर गंगा पूर्व स्थिति सें गये । अर्थात्‌ चन्द्र ने शीतल किर्शें सूये ने ग्रीष्म किरणें और समुद्र ने सुन्दर लहरें धारण की तथा गंगा पूर्व दिशा में पुनः बहने लगी |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now