विनय - पत्रिका | Vinay - Patrika
श्रेणी : पत्रिका / Magazine, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.19 MB
कुल पष्ठ :
630
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोस्वामी तुलसीदास - Goswami Tulsidas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ पर इस कच्यू 2 को मायावाद का सा नहीं न सम- भना चाहिए । ह स पारा यह कि शोश़्यामीजी की रह विनय-पत्रिका भक्ति-रस च्टे नाना स्रादो से भरी हुई हैं । हिन्दी साहित्य भ यदद एक अनमोल रत्न है ।-युदपि इसके छुछ पद जन-साघारण के बीच प्रचलित है. पर शुद्ध पाठ झोर टीका टिप्पणी न होने के कारण इधर बहुत दिनो तक समझ अ्रंथ के पाठ का झानन्द अधिकतर लोग नहीं उठा सकते थे । श्री बेज- नाथ कुरमी आदि की पुराने ढंग की टीकाएँ थी पर वे सब के काम कीनथों। थोड़े दिन हुए पश्डित रामेश्वर भट्ट जी ने झाज कल की चलती भापा में एक टीका की । पर अवधी भाषा से पूर्ण परिचित स होने के कारण कई स्थलों पर वे श्रम से न बच सके । यद्यपि कविता- बली और गीतावली के समान विनय की भाषा भी न्रज ही रक््खी गई है पर अवधी की छाप उसमें जगदद जगह मौजूद है क्योंकि वह गोस्वामीजी की मादभापा थी । ऐसे स्थलों पर प्रायः अथे में भले हुई हैं जैसे-- राम को गुलाम नाम रामबोला राख्यो राम काम यहै नाम दे दो कहूँ कदत दों । रोटी छूगा नीके राखे आगेहू की बेद भाखें-- मलो हहै तेरो ताते श्रानंद लहत हों ॥ ७६ इस पद में रोटी लूगा का झथे अन्न वस्ख स्पष्ट है पर श्रीयुत्ू भट्ट जी ने अथे किया है रोटी लगा । पूरबी शब्द लूगा का अथ न जानने पर भी यदि भट्ट जी ने लेना क्रिया के लूँगा रूप पर ही विचार कर लिया होता--तो इस प्रकार का अथे करने के श्रम से बच जाते । लिना क्रिया का लूँगा रूप न त्रजभाषा में ही होता है न बवधी में ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...