शासन मुक्त समाज की और | Shasan Kukta Samaj Ki Aur

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Shasan Kukta Samaj Ki Aur by धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- ईद - वियडू निसोड हुआ श्वीर सारी दुनिया में व पैल गया । इुनिया से राजतत्र यत्म दो गया | इस क्राति वी चेश में मनुष्य ने एक मदन भूल वी । उसने रलाश्रों वो सत्म स्पा, लेगिन वे जिस दट शक्ति के मालिक थे, उसवी श्रावश्यकता को पत्म नदी क्या । सिर्फ राजा के हाथ से उसे छीनकर पार्तिमामट के नाम से जनता के प्रतिनिधियों की सस्या बनाकर उसके हाथ में सौंप दिया श्रौर सौचा कि श्र हमारे श्रपने थाठमी के हाय में टेंड दे, इसलिए फोई यतरा नदी । देदात में एक कद्यायत्त है, “संवों मये कोनगल शान डर कादे वा 1? श्र्धात्‌ श्र चैन से सोया जा सकता है । जनता मी श्रतिनिधियों वो चुनर्र चैन से सो गयी । सिस्त “प्रडुवा पाय कादि मद नाहों' इस तत्व को बद मूल गयी । निश्चित जनता की सुम्ययरथा श्रौर संचालन के दद्दाने ये नये दड्द धारी झ्पनी श्शिल शक वो लेकर जन-नीयन के श्रथिक-में-ग्रथिक दिरमे पर बच्चा करने लगें । नतीजा यह हुध्ना कि राजतन के समय से लोक्तम में जनता पर दंड था दयल बचत गया यानी उसकी '्ाजादी घरती गर्व । श्रर्यात्‌ उसकी श्रामा श्रविक कुट्टित श्रीर निर्दलिन होने लगी । ार्थिक फ्रांति




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