वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग 1 | Vaidik Vangmay Ka Itihas Bhag I
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अपने शाखा-विपयक पुस्तक (सन् १९४७) के आारम्म में उन्दों ने स्पष्ट
मेरे अन्थ के प्रति श्राभार माना है ।
एक श्राश्वये की बात और हे । सन् १६४२ मे पूना से छ0ट्टा८85 01 एऐ10
505 (1917-71942) नामक ग्रन्थ छुपा । उस में वटिक शष्ययन का इति-
वृत्त प्रथम स्थान पर छुपा हे | उस में जहा दमारे वैजवाप गह्म (प्र९ १२),
मार्डूकी शिक्षा (प्र १ ८) आर पब्चपटलिका (प्रष्ट १४) के सस्करणों का उल्लेख
है, वहा हमारे वैंदिक वा मय का नाम मात्र नहीं । टसे यूल समें, वा पाश्चात्य
प्रभाव के कारण श्रवदेलना का सस्कार, इसे लेखक डाणडेकर स्वय समसे ।
श्रब वैदिक वाइमय के विपय में नए अन्थों में प्रकाशित मतों का
सक्तिप्त परिचय टिया जाता है |
1 इन्हीं दिनों(सन् १६४५६)'भारतीय संस्कृति का चघिकान्व' न मक
एक पुस्तक प्रकाशित हुई है । इस के लेखक डा० मझ्जलंटवजी शास्त्री हैं इस
पुस्तक में पाश्चात्य विचारधारा का मभाव रुपए है । भारतीय वाड्मय के काल-
क्र का लेखक को अ्णुमात्र ज्ञान नदीं । उन्होंने मिव्या भापा सत के द्ाधार पर
जो प्राग्वेदिक काल (प्रष्ठ १३ माना है, उस का इतिहास में साध्य नहीं | दस
पुश्तक में कई भूलें श्रक्कन्तव्य हैं। उदादरणाध यथा--
१--सस्कृत वाइमय के ब्राह्मण, उपनिपद् दाद श्नेकानेक ग्रन्थ ऐसे
हैं, लिन पर उन के कर्तात्रों के नाम नहीं मिलते । इसी लिए, उनके विपय में
पौरुपेयत्व थ्रपोंरुपेयत्व का विवाट चिर काल से चला द्याया है | प्रष्ठ २०३ ।
र-रसस्कृत साहित्य में एक ही ग्रन्थ के झनेक सस्करणों का जो
वेटों के समान नहीं है--प्राय उल्शेख मिलता है, जैसे मनुस्मृति, वृद्ध
मनुस्मृति श्रादि | पृष्ठ 5४ |
समीक्षा न्न्वाह्मण श्रीर उपनिपद् श्ादि इन्थ प्रोक्त घ्न्थ हैं । इन मे
कहेत्व हैं ही नहीं । तव इन के साथ कर्ता का नाम कैसे जोढा जा सकता है ।
प्रवचन ग्रन्थ होने से प्रवक्ता का नाम इन के साथ सम्बद्ध हैं । इफ्टर नी ने
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