जेबुन्निसा के आसु | Zebunnisa Ke Aansu

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Zebunnisa Ke Aansu by श्री ओमप्रकाश भार्गव - Shree Omprakash Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-परिचय नशे राजकुमारी को फारसी भाषा से अधिक प्रेम था । वह छिप-छिप -कर फारसी कविता लिखा करती थीं । उनके एक दूसरे शिक्षक शाह रुस्तम य्राज़ी ने राजकुमारी की कविता पर सुग्ध होकर भविष्यद्वाणी की थी कि राजकुमारी का नाम जब तक फ़ारसी भाषा संसार मे प्रचलित रहेगी अमर रहेगा और उनका यश शताब्दियों तक गाया जायगा । होनददार बिरवान के होत चीकने पात राजकुमारी ने कविता लिखना सैरद-चौद्ह व्प की आयु से ही आरम्भ कर दिया था किन्तु उनका उस समय का काव्य ऐसा था जैसे जगल की लम्बी घास मे चार-छे सुन्दर फूल खिले हो | अन्य कवियों की भाँति प्रेम बिछोह तड़ृपन जलन यही उनके काव्य का ममे होता था । सम्रादू औरज्ञजेब काव्य और गायन-कला के कट्टर विरोधी थे | अकबर और जहाँगीर के समय के बड़े-बड़े कचि और गायनाचाय औरज्ञजेब ने दरबार से विदा कर दिये थे । लेकिन राजकुसारी का काव्य-प्रेस देखकर उन्होने कवियों के लिये फिर एक नया दरवाज़ा खोल दिया था । ऱजले और क्रसीरे पेश किये जाने पर उनके बदले मे कवियों को अनेक उपहार और चेशक्रीमती इनामात दरबार से मिलते थे । सम्रादू ने सहला मे दीवान हाफिज जिसमे शज्ार रस के भाव औआओतप्रोत हैं पढ़े जाने की सख्त सुसानियत कर दी थी मगर राजकुमारी के




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