प्रेम योग | Prem Yog

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Prem Yog by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(दे) विषय के पदार्थोसि इटाकर उस 'इन्द्रियों के परे वस्तु 'अथोत्‌ परमेश्वर में लगा देवे । फोर जिस प्रकार का प्रेम डॉद्रियों के भोग्य पदार्थों पर था उसी प्रकार का प्रेम सग- स्वाद में लग जाने पर उलका नाम “” मक्ति ” दो जाता है. । सन्त श्रीरामाचुजाचार्य के मतानुसार उस उत्कढ जम की प्राप्ति के लिये नीचे लिखी साधनायें हैं । प्रथम साघना है ' बिबिक * यद्द चिशषतः पाथ्यातों कौ दृष्टि में विचित्र बात है । श्री रामाजुजाचार्य के मत से इसका झ्थ है ” झाह्ारमीमांसा ” या “” खाद्या खाद्य रबिचार ” । हमारे शरीर और मन की शक्तियों की निमोणु करने वाली समग्र संजीवनी शक्तियां हमारे भोजन के' भीतर ही रहती हैं। अभी जो कुछ मैं हूं सो सब दी इसके पूर्व मैंने जो खाया उस भोजन सामग्री में दी था। बदद सब खाद्य पदार्थों से दी मेरे शरीरमें छाया उसमें संचित ' रहा और नया रुप धारणु किया पर चस्तुतः मेरे शरीर में छोर मेरे मन में मेरे खाये हुए झन्न से मिन्न ओर कोई वस्तु नहीं है । जैसे भौतिक सष्टि में हम शक्ति बार जड़ पदार्थ पति हैं श्रौर यदद शक्ति और जड़ पदाथ हम में मन छोर शरीर बन जाते हैं। ठीक उसी तरद यथा में देद ओर मनमे, ओर हमारे खाये हुए अन्न भरे, केवल झाकार या रूप का झंतर है। ऐसा दोते हुए, जब दम झपने भोजन के जड़कणी द्वास दी अपने विचार




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