सन्यासी या देश को आवाज | Sanyasi Ya Desh Ko Awaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.18 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवत स्वरुप जी जैन भगवत - Bhagwat Swaroop Jee Jain Bhagwat
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'राष्ट्रीय-नाटक [१५३
“स्व. नया “नका- नमक
सद्दाराज--( गस्भीरता से ) तोड़ दिया ! ”****” तोड़ दिया--वदद
आइना भी तोड़ दिया जो मुझे अपनी साफ़ सूरत
बतला रहदा था ! ”” आओफ़् ज़ल्म'” ! जुल्म ! मेरी
आँखों के सामने एक बे-गुनाद का खून ?
बज़ोर--(बड़े प्रेम से) नहीं, महाराज ! इसका नाम जुल्म नहीं,”
राज नीति है ! राज-काज इसी तरह चलता है। आप
नहीं समक सकते, इसके लिए . एक नहीं, सेकड़ों मनुष्यों
का ,खून वहा कर सल्तनत की नींव मज़बूत की जाती
है | नहीं तो देश में विद्रोह की आग भड़क उठती है ।
महाराज-( भोलेपन के साथ ) अच्छा ? यह बात है ?--तो
लाश्ो एक जाम और !
( बजीर जाम भर कर देता हैं, महाराज पीते
हैं--सिंहामन पर बिराजे हुए ) ।
[ पट-परिवतन ]
तीसरा दृश्य
[ स्थान>-श्मशान-भूमि ! नर मुण्ड, हदृड्ियाँ जहाँ-तहँ पढ़ी
हैं! एक चिता जल रददी चारो ओर शान्ति ! ]--
| सुनीता का भागते हुए आना ! ।
: सुनीता--( रोते हुए ) पिता जी ! पिता जी !! कहाँ गए मुझे
अकेला छोड़ कर ? मुझ अभागिनी को अनाथ बना
कर ? आह ! इस भयावने संसार में कौन हे मेरा ?
किसको अपना दुख सुना कर हृदय की आग को
हल्का करूँ ? ( रोती है ) 'ओह ! देशसेवा के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...