श्री रामचरितमानस | Sri Ramcharit Mans
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
930.52 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# श्३
बेदे बिदित कद्दि सकठ बिघाना । कहेठ रचहु पुर बिविध बिताना॥
सफल _ रसाऊ पूगफल: केरा । रोपहु वीथिन्दद पुर चहूँ फेरा ॥ ३ ॥
मुनिने वेदॉमें कहा हुआ सब विधान बताकर कहा--नगरमें बहुतसे
मण्डप ) सजाओ ।. फर्लॉसमेत आम, सुपारी और केलेके ब्रक्ष
नगरकी' गलियोंमें चारों ओर रोप दो ॥ ३ ॥
रचहु मंजु मनि चौके 'चारू । कह बनावन बेगि बजारू ॥
गनपति गुर कुछदेवा । सब बिधि करहु भरूमिसुर सेवा॥ ४ ॥
सुन्दर मणियोंकि मनोहर चौक पुरवाओ और वाजारकों तुरंत
लिये कद दो । . श्रीगणेशजी, शुरु और कुलदेवताकी पूजा करो
गौर भूदेव-न्राझरणोकी सब प्रकारसे सेवा कसे ॥ ४ ॥
दो०-ध्वज पताक तोरन कलस सजह तुरग रथ नाग ।
सिर घरि मुनिवर वचन सबु निज निज काजहिं ाग ॥ ६ ॥
ध्वजा, पताका, तोरण, कलश, घोड़े, रथ और दाथी सबको सजामो ।
मुनिश्रेप्ठ वर्सिजीके वचनोंकों शिरॉधघार्य करके सब्र लोग अपने-अपने
काममें लग गये ॥ ६ ॥े
चौ०-जो मुनीस जेहि दीन्हा । सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा ॥
बिप्र साघु. सुर पूजत राजा । करत राम हित मंगल काजा॥ १ ॥
मुनीश्वरने जिसको ' जिस कामके लिये भाज्ञा दी, उसने वह काम
[ इतनी शीघ्रतासे कर डाला कि ] मानों पहलेसे ही कर रक्खा था।
राजा ब्राह्मण, साधु और देवतार्ओकों पूज रहे हैं और श्रीरामचन्द्रजीके लिये
सर्च मज़लकाये कर रहे हैं ॥ ₹॥ कं
सुनत राम सुद्दावा । बाज गद्दागद अवध बघावा ॥
राम सीय तन सगुन जनाए । फरकई्ि मंगठ क्ंग सुद्दाए ॥ शा
श्रीरामचन्द्रजीके राज्यामिषरेककी सुद्दावनी खबर सुनते ही अवधघभरमें
बढ़ी धूमसे बंघावे बजने लगे । श्रीरामचन्द्रजी और सीताजीके शरीर में
भी झुम शकुन सूचित हुए । उनके सुन्दर मज्ञल अज्ञ फड़कने लगे ॥ २ ॥
सुरकि सप्रेम परसपर कहह्दीं । भरत झागमनु सूचक अहहीं ॥
भए बहुत दिन अति सवसेरी । सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी ॥ ३ ॥।
पुछुकित होकर वे दोनों प्रेमसहित एक-दूसरेसे कहते हैं कि ये सच्च
दाकुन भरतके आनेकी सना देनेवाले हैं । [ उनको मामाके घर गये ]
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