श्री रामचरितमानस | Sri Ramcharit Mans

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# श्३ बेदे बिदित कद्दि सकठ बिघाना । कहेठ रचहु पुर बिविध बिताना॥ सफल _ रसाऊ पूगफल: केरा । रोपहु वीथिन्दद पुर चहूँ फेरा ॥ ३ ॥ मुनिने वेदॉमें कहा हुआ सब विधान बताकर कहा--नगरमें बहुतसे मण्डप ) सजाओ ।. फर्लॉसमेत आम, सुपारी और केलेके ब्रक्ष नगरकी' गलियोंमें चारों ओर रोप दो ॥ ३ ॥ रचहु मंजु मनि चौके 'चारू । कह बनावन बेगि बजारू ॥ गनपति गुर कुछदेवा । सब बिधि करहु भरूमिसुर सेवा॥ ४ ॥ सुन्दर मणियोंकि मनोहर चौक पुरवाओ और वाजारकों तुरंत लिये कद दो । . श्रीगणेशजी, शुरु और कुलदेवताकी पूजा करो गौर भूदेव-न्राझरणोकी सब प्रकारसे सेवा कसे ॥ ४ ॥ दो०-ध्वज पताक तोरन कलस सजह तुरग रथ नाग । सिर घरि मुनिवर वचन सबु निज निज काजहिं ाग ॥ ६ ॥ ध्वजा, पताका, तोरण, कलश, घोड़े, रथ और दाथी सबको सजामो । मुनिश्रेप्ठ वर्सिजीके वचनोंकों शिरॉधघार्य करके सब्र लोग अपने-अपने काममें लग गये ॥ ६ ॥े चौ०-जो मुनीस जेहि दीन्हा । सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा ॥ बिप्र साघु. सुर पूजत राजा । करत राम हित मंगल काजा॥ १ ॥ मुनीश्वरने जिसको ' जिस कामके लिये भाज्ञा दी, उसने वह काम [ इतनी शीघ्रतासे कर डाला कि ] मानों पहलेसे ही कर रक्‍खा था। राजा ब्राह्मण, साधु और देवतार्ओकों पूज रहे हैं और श्रीरामचन्द्रजीके लिये सर्च मज़लकाये कर रहे हैं ॥ ₹॥ कं सुनत राम सुद्दावा । बाज गद्दागद अवध बघावा ॥ राम सीय तन सगुन जनाए । फरकई्ि मंगठ क्ंग सुद्दाए ॥ शा श्रीरामचन्द्रजीके राज्यामिषरेककी सुद्दावनी खबर सुनते ही अवधघभरमें बढ़ी धूमसे बंघावे बजने लगे । श्रीरामचन्द्रजी और सीताजीके शरीर में भी झुम शकुन सूचित हुए । उनके सुन्दर मज्ञल अज्ञ फड़कने लगे ॥ २ ॥ सुरकि सप्रेम परसपर कहह्दीं । भरत झागमनु सूचक अहहीं ॥ भए बहुत दिन अति सवसेरी । सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी ॥ ३ ॥। पुछुकित होकर वे दोनों प्रेमसहित एक-दूसरेसे कहते हैं कि ये सच्च दाकुन भरतके आनेकी सना देनेवाले हैं । [ उनको मामाके घर गये ]




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