सुंदर मानव सुंदर समाज | Sundar Manav Sunder Samaj

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सुंदर मानव सुंदर समाज  - Sundar Manav Sunder Samaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जवाहिरलाल जैन - Jawahirlal Jain

Add Infomation AboutJawahirlal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
*. झगलसमयप विधान , ट साधनविष्ठ मानव-समाज मे परस्पर स्नेह की एकता रहती है । स्नेह की एकता ही एकमात्र सघर्प के नाश में हेतु है । अपने-अपने मजहव तथा इज्म के आधार पर स्नेह की एकता से भिन्न किसी अन्य प्रकार की एकता की स्थापना का प्रयास करना परस्पर दलवन्दी तथा सघर्प को जन्म देना है, जो विनाश का मल है । अपनी-अपनी मात्यतामों से अपने को सुन्दर बनाकर प्राप्त सुन्दरता से समाज की सेवा करना हितकर है । पारस्परिक सहयोग द्वारा भिन्‍नता मे एकता स्वापित होती है । आग्रह तथा नधिकार तो एकता के नाम पर भिन्‍नता को ही पोपित करना है। जो बुराई बुराई के वेश मे आती है उससे उतनी क्षति नहीं होती, जितना चिनाश उस बुराई से होता है, जो भलाई का चेश घारण कर जाती है । सुघार के नाम पर सघर्प का जन्म इसी प्रमाद से होता है। आग्रह तथा अधिका रलोलुपत्ता ने, ही सीमित अहभाव को जन्म दिया है, जो विनाश का मूल है । सीमित अहभाव के कारण ही ममता, कामना एव तादात्म्य का पोपण होता है । समस्त विकारों की भूमि ममता है औौर पराघीनता एव अशान्ति की जननी कामना है एव तादात्म्य से ही परिच्छिननता जीवित रहती है, जिसके रहते हुए भनेक प्रकार के भेद तथा भिननता उत्पन्न होती है, जो अवनति का मूल है । इस दृष्टि से अह भाव का अन्त करना अनिवायें हैं, जो एकमात्र अचाह, मश्रयत्त एव समपंण से ही सभव है । यह सभी को विदित है कि मानव को ज्रिया-शक्ति, विवेक-शक्ति तथा माव-शक्ति प्राप्त है । भाव-णक्ति के सदुपयोग द्वारा मानव बिना जाने, सुने हुए प्रभु से अविचल आस्वा, श्रद्धा, विश्वासपु्वंक आत्मीयता स्वीकार कर सकता है, जिसके करते ही अह गौर मम का नाश हो जाता है बीर नगाघ अनन्त, नित-नव प्रियता जाग्रत होती है। अहू और मम के नाश होने से समस्त कमा का फल नाश हो जाता है गौर प्रियता के जाय्रत होने से नित-नव-रस की अभिव्यक्ति होती है, जो वास्तविक माँग है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now