समाज - सुधार : समस्यायें और समाधान | Samaj - Sudhar : Samsyay Aur Samadhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
53.42 MB
कुल पष्ठ :
1085
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). हास में सतियों को विकेष साहात्म्य प्राप्त हुआ है। जो नारिया मृतपति के
साथ स्वेच्छा एवं आन्तरिक प्रेरणा से चितारोहण करती थी वे अपने महृत्
- एवं लोकोत्तर जीवन से समस्त समाज को श्रेयस्कर
सिन्न दृष्टि संस्कारो से उद्भासित करती थी। भारतीय समाज ने
देवी समझ उनकी पुजा की है। गावो मे आज भी उनके
अनेक देवले सुरक्षित है जहाँ स्त्रियाँ अपनी सौभाग्य-कामना के लिए पूजा-अर्चा
करती है। माना यह जाता था कि जो नारी जीवन और मरण दोनों मे पति के
साथ है वही पति-प्राणा है। इसी भाव से अगणित नारियो ने हुँसते-हँसते चिता-
रोहण किया है, विधवा नहीं सधवा रूप से मरण भारतीय नारी का काम्य रहा
है। कालान्तर में जब धर्म में, समाज मे, जीवन मे, शासन मे, विकृतिया आईं
तब प्रेरणा निःशेष हो गई; सती-प्रथा एक निष्प्राण परम्परा बन गई और लोग
बलात विधवा नारी को केवल परम्परा के निर्वाह के लिए पति की चिता पर
रखकर जलाने लगे। जो धर्म था, अधर्स हो गया। समय आने पर, चेतना जगने
पर इसका विरोध हुआ और आज सती-प्रथा कानून से बन्द कर दी गई है। आज
जैसी स्थिति है, उसे देखते हुए यह सब उचित ही है, और सामान्यत. ऐसा ही होना
भी चाहिए।
किस्तु समस्त कानूनी प्रतिबन्धों एव समाज की वर्जनाओ को चुनौती देकर
मृत्यु के वीच भी निष्कस्प दीप-शिक्षा की भाँति स्थिर, पति के मरण पर सथवा-
वेश मे सहज श््गार करके हूँसते-हँसते, सबको आणी-
_ कौन सत्य है : मृत्यु के वर्दि देकर और सबका आशीर्वाद लेकर, चितारोहण
अनन्तर जीवन की साधना करनेवाली कोई-कोई सती अब भी देखी जाती है।
या मरण में अमत जीवन लोक-मानस ऐसी स्त्री की युगो तक पूजा करता है।
कौ ध्मध ? परन्तु गाधी जी का ऐसी बातो मे तीन्र विरोध है।
. उनका कहना है कि “विवाह वास्तव मे गरीर का नहीं,
आत्मा का है।' * * यदि विवाह एक शरीर-विजेषघारी जीव के साथ का दी
सम्बन्ध हो तो उस शरीर के नष्ट हो जाने पर विवाह का भी अन्त हो जाता हैं
और आत्म-हत्या करने से वह शरीर पुनः नहीं मिल सकता। विवाह घरीर
द्वारा आत्मा का सम्मिलन है। एक आत्मा की भक्ति से अनेक जि की अथत्
परमेदवर की भक्ति सिद्ध करने की कला सीखने का भेद विवाह मे छिपा टूआ
है इक इसलिए सच्ची सती * * साध्वी वनती है, तपस्विनी लगती है कक
कुट्म्ब की, और देश की सेवा करती है; वह घर-गृहस्थी मे कस पक नारि
भोग भोगने के बजाय अपना ज्ञान बढाती है; त्याग-झक्ति बढ़ाती हू आर पति में
डर
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