सत्याग्रह और असहयोग | Satyagrah Aur Asahyog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.58 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).... सत्यायद 1
जनाष जसेका प्रयोगनसद्दार साधारण योद्धा, साधारण तीरसे नहीं कर
मफते । उसके छिये उन्हें चिरकाठ तक अभ्यास, अप्ययगाय, तप्रथरण और ललुण ने
यरना पढ़ता है। तर उन्हें प्रयोग सद्दाररी शक्ति प्राप्त होती हू । टसके बाद
हुर रिसी पर वे उससा य्रयोग भी नहीं चर सफझते। जर विरोधाकों में साधारण
दाख्रमें मद्दीं दुवा सफ्ते तय उन्दें उस अखका श्रयोग करना पढ़ता दे--ओर इस
यानरा उन्हें ्यान रदता ई कि उनका बह अख अपमानित न न
हो--स्यर्थ न हो कर दीन-वीय न हो ।
रस इसी सेंमाल और सादधानी सन्याप्रद सद्दास्यके प्रयोग और सद्दारमे
दवानी चादिये। भी असावधानीस मददात्न व्यर्थ हो सकता हैं, फिर या तो
उसरा संदार ही न हो सकेगा धीर या वद सद्दार होते दी अपना समनाद फर देगा 1
प्रस्येक व्यक्ति है, पर झार्मग्ल सबयों प्राप्त नददी दै--आमवलकों
'ुर और सर्वोदीर दिये बड़े फदिन तपरी आवश्यकता है। जो व्यक्ति
शामगलरा अधिष्ाता दोना चाहे उसे वाम, कोघ, लोभ, मोद और इन्दियोंरि
समस्त विकार--इच्छा, द्रेप आदि--पर विनय पाना चाहिये । साधारणतया
प्रावस्य इद्धियों पर होता है, मन पर घुद्धिका लोर बुद्धि पर शात्माका । पर आम
दलवों प्राप्त वरनेशी इच्छा सीधे आत्माफों हीं सर्वाधिवार-सम्पन्न करना
होता है, घेप सब मन, युद्ध और इन्दियोदो उसके शधीन--सर्वया क्र्धीन---
रदना पढ़ता है । उसे ऐसा वन जाना चाहिये कि मन, इच्दिय भोर घुद्धि पर थदि
जेयाचार इनस हनने क्या यन्त्रणाकी भागम
ये जलाई जारयें-तन भी आत्मा विदलित न हो; इस पर दया न करे-इनकी दिया-
किशन परे-इनया लालच न करे, इन्दे भले ही न हो जाने दे, पर वदद इनके लिये
सपनी टृढतामें बल न पड़ने दे । ये बस्तु--मन, बुद्धि, नष्ट भी हो
जायेगी तो कोई चिन्ता नहीं, ये पुन' प्राप्त क्योंकि आत्मा इनका झधिष्राता है
मर यह भभिछातृ पर आत्माकों नित्य श्राप्त है । इनके न होते ही ये सब नवीन
पुन तुरन्त आत्माकों देवीशक्ति द्वारा प्राप्त दोंगी । आत्मानि इनके निर्माणकी
सत्ता दे-नयोग्यत्ता दे--औओर श्रमुता है।
आत्मवलकी यदद ह्विति व्रत, उपवास, तप और हटके निरन्तर प्राम
हो सकती है । मतकेी प्रथम प्यानमें अभ्यास करे। ध्यान वहते दे मनके
User Reviews
No Reviews | Add Yours...