सत्याग्रह और असहयोग | Satyagrah Aur Asahyog

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Satyagrah Aur Asahyog by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.... सत्यायद 1 जनाष जसेका प्रयोगनसद्दार साधारण योद्धा, साधारण तीरसे नहीं कर मफते । उसके छिये उन्हें चिरकाठ तक अभ्यास, अप्ययगाय, तप्रथरण और ललुण ने यरना पढ़ता है। तर उन्हें प्रयोग सद्दाररी शक्ति प्राप्त होती हू । टसके बाद हुर रिसी पर वे उससा य्रयोग भी नहीं चर सफझते। जर विरोधाकों में साधारण दाख्रमें मद्दीं दुवा सफ्ते तय उन्दें उस अखका श्रयोग करना पढ़ता दे--ओर इस यानरा उन्‍हें ्यान रदता ई कि उनका बह अख अपमानित न न हो--स्यर्थ न हो कर दीन-वीय न हो । रस इसी सेंमाल और सादधानी सन्याप्रद सद्दास्यके प्रयोग और सद्दारमे दवानी चादिये। भी असावधानीस मददात्न व्यर्थ हो सकता हैं, फिर या तो उसरा संदार ही न हो सकेगा धीर या वद सद्दार होते दी अपना समनाद फर देगा 1 प्रस्येक व्यक्ति है, पर झार्मग्ल सबयों प्राप्त नददी दै--आमवलकों 'ुर और सर्वोदीर दिये बड़े फदिन तपरी आवश्यकता है। जो व्यक्ति शामगलरा अधिष्ाता दोना चाहे उसे वाम, कोघ, लोभ, मोद और इन्दियोंरि समस्त विकार--इच्छा, द्रेप आदि--पर विनय पाना चाहिये । साधारणतया प्रावस्य इद्धियों पर होता है, मन पर घुद्धिका लोर बुद्धि पर शात्माका । पर आम दलवों प्राप्त वरनेशी इच्छा सीधे आत्माफों हीं सर्वाधिवार-सम्पन्न करना होता है, घेप सब मन, युद्ध और इन्दियोदो उसके शधीन--सर्वया क्र्धीन--- रदना पढ़ता है । उसे ऐसा वन जाना चाहिये कि मन, इच्दिय भोर घुद्धि पर थदि जेयाचार इनस हनने क्या यन्त्रणाकी भागम ये जलाई जारयें-तन भी आत्मा विदलित न हो; इस पर दया न करे-इनकी दिया- किशन परे-इनया लालच न करे, इन्दे भले ही न हो जाने दे, पर वदद इनके लिये सपनी टृढतामें बल न पड़ने दे । ये बस्तु--मन, बुद्धि, नष्ट भी हो जायेगी तो कोई चिन्ता नहीं, ये पुन' प्राप्त क्योंकि आत्मा इनका झधिष्राता है मर यह भभिछातृ पर आत्माकों नित्य श्राप्त है । इनके न होते ही ये सब नवीन पुन तुरन्त आत्माकों देवीशक्ति द्वारा प्राप्त दोंगी । आत्मानि इनके निर्माणकी सत्ता दे-नयोग्यत्ता दे--औओर श्रमुता है। आत्मवलकी यदद ह्विति व्रत, उपवास, तप और हटके निरन्तर प्राम हो सकती है । मतकेी प्रथम प्यानमें अभ्यास करे। ध्यान वहते दे मनके




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