विराम चिन्ह | Viram Chinh
श्रेणी : संगीत / Music
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.04 MB
कुल पष्ठ :
87
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)...औी मेरे मन के अविनाशी मेरे विश्वासों में उतरों द्लो मेरे मन के श्रविनाशी मेरे एतड्ञनड़ के कृूलों में उतरो सब ढ़िन के मधुमासी एम नें मेरी उत्कंठा में यह कसी माढृक लों धर की प्रकज्ञाये थाढ़ भरे मन में गीतों की तम्म्यता भर दी कब सीख भी विधि पाया था में प्रारा जलाना तिल-तिह कर कवि की. सॉम्दर्य-पिपासा तुमने पूजा में परिखत कर ढ़ी इस मरु की धरती पर बरसों बरसों ९ मेरे आकाशी मेरे विधासों में उतरों छो मेरे मम के ग्रविनाशी में ढूं ढ़॒ रहा श्रपन दिल में बहती तृष्णा का छोर थडाँ पहचान नट्टीं पाथा अब तक खोधे मन का विज़ाम जड्टा भटकी भटकी सी फिरती हैं थे कॉपी बिघुड़म की छाँडें प्यासी मेरी छघ्ुता प्यासी--प्यासे जीवन का छोर कहाँ मेरे अवशेषों में उतरों श्लो उज्ज्वचलता के. अधिवासी मेरे विधायों में उतरो ो. मेरे ऊन के अधविनाशी मेरे संशय-संशय में तुम ग्रपना संकल्प जगा. जाते सुख-दुख की इन झ्रतुड्ारों को कितनी संगीम बना जाते पुरी मे श्रभ् तक हो पाई मधदूधी आँसु की माला मेरे मन में उमड़े जल को क्यों इतना निष्फल कर जाते कटी जल़धारों में गो रस के फलधर श्रम्तवत्ती मेरे विधासों में उतरों आओ. मेरे मन के अविमाशी मेरी श्रासयत्ति बगे मिंहा ममता र्पित हो भक्ति बम बिन जानें बिम अनुमाने जीवन की सोमा ही शक्ति बने तुम पूर्ण श्रमरता में श्रपनी है. मुग्ध न्ध्ुरापम नेरा मेरी चंचलता की उलका तुम तक पहुंची झनुरक्ति बन बैँध जात मेरे सपने में औओ मेरे राग सम्थासी मेरे विधासों में उतरो औ मेरे मम के अविनाशी 22
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