भागवत - दर्शन | Bhagavat Darshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भागवत - दर्शन  - Bhagavat Darshan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरबंशलाल शर्मा - Harbanshlal Sharma

Add Infomation AboutHarbanshlal Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| ० | जब हम भागवतानुसारी साहित्य की बात कहते है तो हमारा अभिपाय यह नहीं हैं कि भागवत का अनुसरण करने वाले कवियों ने अपनी रचवाशझों से ज्यों का प्यों भागवत की अनुवाद कर दिया हो । इसका शभ्रभिप्राय: तो केवल इतना ही है कि भागवत के श्रभाद से कृष्ण-भक्ति साहित्य को एक विशेष दिशा मिली तथा भागवतोक्त सामान्य तथा विशिष्ट तत्त्वो का वैष्णव भ्रक्ति-भावना में समावेश हुमा । बेष्णाव द्ाचार्यों के प्रभाव से. सम्पूर्ण देश में कृुष्णभक्ति का प्रचार हुआ । सम्प्रदायों में दीकित भक्तों के अतिरिक्त मत्य कवियों ने भी सक्ति-साहिस्य की रचना की । भगवाद कृष्ण का लीला-क्षेत्र ब्रज होने के कारण ब्जभाया में सबसे ग्रघिक भागवतानुसारी साहित्य लिखा गया । निम्वाकं , सखी , राघावल्लभीय, चैतन्य तथा वल्लभ सभी सम्प्रदायों का दिगाल भागवतानुसारी साहित्य भ्ाज हुमे प्राप्त होता है । प्रत्येक सम्प्रदाय में झनेक प्रतिभाद्षाली कवि हुए तथा उन्होंने झनुपम भविति-साहित्य की रचना को । वल्लभ सम्प्रदाय के कवियों को छोड़कर झन्य सम्प्रदायों के प्रमुख भक्त- कवियों के अजभाषा साहित्य का निरूपस्य हमने ग्रंथ के दम श्रध्याय में किया है ! कृष्ण की रूपनपाधुरी झ्ौर लोलाशओ को लेकर इन कवियों ने श्पनी श्रलौकिक कत्पना से श्रनेक चित प्रस्तुत किए हैं । भक्ति के विभिन्न रूपों श्रौर तत्वों की विवेचन भी उचकी रचनाओ मे हुआ है। रचनाओं का सुलस्वर प्रेम श्ौर स्थज्ार ही रहा हैं । शायद इसीलिए इन सम्प्रदायों मैं युगल उपासना के लिए राधा को इतना महत्त्व दिया गया । भागवत से प्रेरणा ग्रहण कर ब्रजभाषा में सबसे भ्रधिक श्र प्रारावाद साहित्य की सर्जना वल्लथ सम्प्रदाय के कबियों ने की । बात यह है कि वल्लभ संम्प्रदाय का ध्मे-क्षेत्र श्रौर कार्ये-क्षेत्र प्रधानरूप से बज ही रहा ! इस सम्प्रदाय के अधघिकांग ब्रजभाषा कनियों की एक यहीं विशेषता थी कि. उनकी मातृभापा ब्रजभाषा थी ' यहीं कारण हैं कि उनकी रचनाओं में ब्जभाया का निखरा हुआ रूप मिलता है तथा ब्रजक्षेत्र की सांस्कृतिक, सामाजिक गौर साहिहियिक परम्परायों का भी उनमे यथोचित सन्निवेजा है । पुष्टि सम्प्रदाय मे भगवाचु की प्रत्येक लीला के लिए एक दा निक तथा श्राध्याह्मिक इृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है तथा लीला के उपकरणों को नित्य-स्वरूप प्रदान किया है। कृष्ण की रूपमाधुरी श्रौर ब्रज के भ्रलोकिक प्राकृतिक सौदयें मे वे उपकरण बड़े दिव्य और सनोहारी बन गये हैं । पुष्टिन्सम्प्रदाय के कवियों ने उनका वणुंन बड़े कवित्वमय श्रौर ऑ्राकर्षक ढंग से किया हूं । एक-एक उपकरण को लेकर एक-एक खण्डकाव्य को रचना कर डाली है ' पुष्टिमार्गीय सेवा- भावना इस विशाल साहित्य की सजेना का मूल कारणा थी । मगवानु की आठ भाँकियों मे नियमित कीतंन के लिए झाठ सगीताचायें कीर्तनकार तथा अ्रनेक भालरिया नियुक्त किये गए । श्रष्टछाप के झराठों कीवेंनकार ठाकुर जी के झ्राठ सता के रूप में स्वीकृत हुए । साथ ही साथ श्राचाय बल्लभ के सुपुत्र गोस्वामी विट्रुलनाथजी ने शीकृष्ण की उन सात दिव्य भूतियों को, जो उन्हें अपने पूज्य पिता से सप्तनिधि के रूप में प्राप्त हुई थी. झलग- ग्रलग ग्रपने सातों पुत्रों को दे दिया जिन्होंने उन स्वरूपों की पृथक -पूथकू सेवा घारम्भ की 1 इन्ही सात स्वरूपों के कारण पुष्टि-सम्प्रदाय में सात गृह श्रथवा सप्तपीठ प्रतिष्ठित हुए । इनके माध्यम से पुष्टि सम्प्रदाय में विशाल अजभाषा साहित्य की स्जना हुई । पुष्टि-सम्प्रदाय के झष्ट्छापी कवियों का राधा-वर्णन थी शक थलग विशेषता है । ग्स्थ के एकाददा ध्ष्याय में हमने पुष्टि के भ्रष्टछापी कवियों के सादित्य का ही विश्लेषण प्रस्तुत किया टू




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now