जानवर और जानवर | Janwar Aur Janwar

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Janwar Aur Janwar by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| काला रोजगार २१ जब तक समुद्र का पानी उसकी टाँगों से न टकराने लगता । रात को चमकती हुई वीरान सड़कों पर से लौटते हुए उसे लगता कि वह चल नहीं रहा घिसट रहा है श्रौर वह भी अपने पर ज़ोर देकर । वह देर से जाकर दरवाज़ा खटख़टाता तो पहले उसे चौकीदार की बड़बड़ाहट सुननी पड़ती । फिर ज़ीने में बिखरकर सोये हुए व्यक्तियों के ऊपर से लाँघना पड़ता । कमरा खोलते हुए साथ के किसी कमरे से खाँसी की _ श्रावाज़ सुनाई देने लगती । वह पलंग पर लेट जाता तो खाँसी की उसके झास-पास के वातावरण को व्याप्त कर लेती । वह केई- कई बार तकिये की स्थिति बदलता या पैताने होकर सोने की चेष्टा करता । खाँसी की श्रावाज़ बंद होती तो कहीं से घड़ी की टिक-टिक सुनाई देने लगती । झौर सुबह जब उसकी झाँख खुलती तो कई बार बारह-साढ़े बारह बज छुके होते । कमरे से निकलते ही उसकी मिसेज एडवड्‌ स से मुठभेड़ हो जाती । उसे देखते ही मिसेज एडवड्स की तेवरियाँ गहरी हो जाती वह किसी को लक्षित करके कहती साहब उठ खड़ा हुभ्रा है। वह दाँतों को ब्रश से रगड़ता हुआ पास से निकलकर चला जाता । वहू उधर से लौटकर शभ्रातता तो भी मिसेज एडवड्स कोई बेसी ही बात कह देती श्रब दो बजे साहब नाइता खाएगा। दो बजे छोड़ कर तीन वजे खाएगा । एक दिन जमदेद बुरी तरह भड़क उठा । तुम्हारे पेट में क्यों तकलीफ़ होती है ? मिसेज एडवड्स तमककर खड़ी हो गई । मुझे तकलीफ़ होती है क्योंकि मेरा पैसा ख़च॑ होता है । तेरा बाप यहाँ श्रपनी जायदाद नहीं छोड़ गया है । -... बक नहीं हरामज़ादी । . क्या 5 5? मिसेज एडवड्स श्रावेश में भ्रापा भूल गई तु दारम से डूब नहीं मरता ? बहन के जिस्म की कमाई पर रोटी खाता है श्रौर मेरे सामने झाँखें तरेरता है थू है तेरे जसे झ्ादमी पर थु थु कि




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