सरल गीता | Saral Geeta

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Saral Geeta by लक्ष्मण नारायण गर्दे - Lakshman Narayan Garde

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्री: ॥ सरठ गीता १... पहिला अध्याय । ( १) धृतराष्रने संजयसे पूछाः-हे संजय ! मेरे पुत्रांने और पांडवोने घमेभ्रूमि कुरुघ्नेत्रमें युद्धकी इच्छासे इकट्टे होकर क्या किया (२) सजयने कहा: -दुर्योधनने पांडवोंकी सुसज्ित खेना को देखा और गदर द्रोणाचायके पास जा कर कद्दाः-- ' ( ३) गुरुजी महाराज ! आपके बुद्धिमान शिष्य घृूष्टयस्त- ने पांडवेंकी इस मददती सेनाकी मोचबघन्दी की है; इसे देखिये। (४-६ ) इस सेनामें महावली, मद्दाघजुद्धर, युद्धम भीम और: अजुनसे टक्कर ेनिवाले सात्यकि, विराट, सहदारथी हुपद, छूष्टकेतु चेकितान, वीयंवानू काशीराज, पुरुजित, कुन्तिका पिता कुन्तिभो ज, नरश्रेष्ठ दोव्य, पराक्रसी युघामन्य, बीयवान्‌ उत्तमौज्ञा, अभिमन्य ओर द्रोपदीके पांचों बेटे, ये सभी महास्थी* यहाँ उपस्थित हैं । (४७ ) ओर अब, हे न्नाह्मणवर ! दम लोगोंकि भी सेनापातिया और झूरखरदासोंका दाल सुनिये । में डनके नाम भी आपको सुनाये देता हूं । (<८ ) सबसे पादिले तो मापद्दी है; फिर भीष्स, कण, रण- जीत रुप, अश्वत्थासा, विकण भोर सारिश्रवा थे सब घड़े लड़ाके बीर हूं । (९) और भी नाना प्रकारके दास्त्र चलानेमें निपुण और छ दशइजार द्वार पुरुषोंति मकेले युद्ध करनेराल को महारयी कहते हैं।




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