नित्य पूजा | Nitya Pooja

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११] 2४ हीं विद्यमानविशतिती थेडुरेश्य कामबाणुविनाशनाय पुष्प लि० कास नाग विषधाम, नाश को गरुड़ कहे हो । ज्ुधा महादवज्वाल, तास को मेघ लहे हो ॥ नेवज बहुदत मिप्॒सों (हो), पूजों . भूखबविडार । सीमधघर। ४1 55 हीं विद्यमानविशतितीर्थक्रेम्य नुधारोगविनाशनाय नें वेदय॑ ० उद्यम होन न देत, सब जगमाहिं भरथो है । मोह मद्दातम घोर, नाश परकाश करयो है ॥ पू्जों दीप प्रकाशर्सों, (हो) ज्ञानज्योति करतार ।सीमंघर। ६। हीं विद्यमानपिशतिती्थक््रेश्य सोहांधकारविनाशनाय 'दी पं० । कम आठ सच काठ-भार विस्तार निहारा । ध्यान अगनि कर प्रकट, सब कीनों निरवारा ॥। धूप झनूपम खेपतें (हो), दुःखजलें निरधार ॥सीमंघर।७। 5४ हीं विद्यमानर्विशतिती थेक्करे म्योध्ट्रकम विध्व सनाय घूप॑ ० । मिथ्यावादी दुष्ट, लोभड्हंकार भरे हैं । सबको छिनमें जीत, जैन के मेरु खरे हे ॥ फल झति उत्तमसों जजों (हो),वांछिंत फल दातार ।सीमंघर। ८। 5 हीं विद्यमानरविंशतिती थेक्रेम्य सोक्षफलपाप्ये फल लिवे ० । जल फल झाठों द्रव्य, अर्घकर प्रीति धरी है गणधघर इन्द्रनिहू हैं, थुति पूरी न करी है ॥ 'यानत' सेवक जानके (हो), जगतें लेहू निकार ।सी मंघर।६। व हों विद्यसानविंशतिती थेड्टरेनयो5नघ्यं पद प्राप्तचे ये लि० । १




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