आधुनिक हिंदी कविता की मुख्य प्रवृत्तिया | Adhunik Hindi Kavita Ki Mukhy Pravitiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ छायावाद प्रतीकों के रा श्रपने को व्यक्त करती है । निदान प्रकृति का उपयोग यहाँ दो रूपों में हद्या हैं। एक कोलाहुलमय जीयन से दूर शान्त-स्मिर्ध विश्वास-मुमि के रूप में श्र दुसरे प्रतीक रूप में । रूप ऐंदचर्थ श्रौर स्वछन्दता जो जीवन में महीं सिल सके वह प्रकृति में प्रचुर मात्रा में सिले झतएव कवि की सनोकासनाएं चार-बार उसी के सधर ग्रंत्ल में खेलने लगीं श्रौर प्रकृति के प्रति श्राकलणए बढ़ जाने से स्वभावत उसी के प्रतीक भी भ्धिक रुचिकर श्र प्र य हुए मूँल-दशन वास्तव में जैसा कि मैंनें प्रारम्भ में ही कहा हैं छायावाद सुलतः भारतीय श्रद्वेतबाद का ही प्रोद्भास है । मसहादेवी जी मे छायावाद का सूल- दर्शन सर्वेबाद श्रथवा सर्वात्मवाद माना है श्रौर वास्तव में प्रकृति के श्रन्तर में प्राएयेतना की भावना करना सर्वात्मवाद की ही स्वीकृति है । उन्होंने बेदिक ऋचाशों से समानाम्तर उद्धरण देकर यह स्थापित किया है कि प्रकृति में स्पन्वित जीवन-चेतना की पहचान भारतीय कधि के लिए नवीन ने होकर अत्यन्त प्राचीन है सनातन से चली श्रा रही है । छायाबाद में समस्त जड़-चेतन को मानव-चेतता से स्पर्दित सात कर ध्रंकित किया. गया हैं श्र इस भावना को यदि कोई दारशसिक रूप दिया जाएगा तो बह्ठ निश्चय ही सर्वात्मघाद होगा । सर्वात्मबाद को छायावावी कवियों से प्रत्यक्ष श्रौर श्रप्रत्यक्ष दोनों विधियों से ग्रहण किया । _. झारस्भ में इंस कब्रियों की खिंता-पद्धति पर रासकृष्ण परसहंस विवेकानर्द श्रौर उधर रवीन्द्रताथ के दार्शनिक बिंचारों का सीधा प्रभाव पड़ा। निराला मे . विवेकानस्द की. कई कविताओं का श्रमुंबादे किया हू रासकृष्ण परमहंस पर भी कविता लिखी है। पंत पर भी इनका गहरा प्रभाव था जो बाद में उन्हें योगी . श्ररबित्द के दर्शन की श्रोर ले गयां । प्रसाद ले योगदर्शन तथा उपनिषद भ्रादि का सब्यक मनन किया था सहादेवी को भी भारतीय दर्वान के साथ श्रारम्भ से ही सम्पक था जो क्रमशः घनिष्ठत्तर होता गया । प्रोढ़ि के साथ यह प्रभाव भ्ौर ... भी गहरा हुभ्रा । पंत तथा महादेवी की बाद की रचनाश्ों में घ्ाध्यात्मिक रंग .. स्पष्टतः आ गया हैँ उसका निषेध झाज सम्भव नहीं. है । प्र्तु सर्वात्मवाद को .छायावाद का उद्गम-ोत. सानना संगत नहीं ... होगी । छायावाद का कवि झारम्भ से ही सर्वात्सबाद की . श्राध्यात्मिक शनभति .. से प्र रित नहीं हुआ। पल्लव नीहार परिमल भ्रांसु आदि की सूलवर्ती वासना .. सप्रपत्क्ष श्ौर सुदम तो श्रवदय है परत्तु . सर्वेथा उदात्त और श्राध्यात्मिक नहीं.




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