विध्यतिरिक्त चतुर्विध वेदवाक्यों का मीमांसाशास्त्र सम्मत स्वरुप | Vidhyatirikt Chaturvidha Vedvakyon Ka MeemansaShastra Sammat Swarup

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Vidhyatirikt Chaturvidha Vedvakyon Ka MeemansaShastra Sammat Swarup by श्रीमती गायत्री देवी - Srimati Gayatri Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ न | ৃ ^ : क्या दे | जितते इत्त विवारशा स्त की तर्वरूपता नलद ভ্রীনলী 3 । यस्तकेणा- उनन्धत्ते त धर्म वेद नेतरः * दस मतुस्मृति मेँ उक्त वाक्य में भी त्क॑ शब्द ते ট্নিনাঁয গননা मोमाता वो प्राद्य ३ । मीमाभादर्रीन के जिये “वाक्यशा स्तर शब्द भी व्यवदूत सोता ই | पूवमीमाशा वस्तुतः वेद के वाक्यार्थीीक्वार अर्य वाली र क्योकि येद ॐ वाक्यार्थं निर्णय में इतका पर्भाश्िक उपयोग वै । यथा-*अगिग्नरोत्रं जुहो ति-यह পায় कर्म के स्वरूप का व्याज्यान करने के कारण कर्मा त्पत्ता विधिवाक्य ३, ইলা अर्य निर्धारण न तो वैयाकरणो भारा किया আঁ পলা था,और न दी तर्कदन्न नेयापिय्की द्वारा' सम्भव था । इसतीलिये दाशीनिक क्षेत्र में क्द्वा क्यप माण- पृरपरणः* सा का व्यवदर किया जाता रहा है। यहाँ *पद शब्द के धारा प्रवृत्ति प्रत्यय व्माग भरा उचित शब्दो. नक्वनपरक मुभित्रय धाद जनिर्मि व्याकरणशास्त्रे का द्रण किय गया है, वाक्य शब्द লীলা*লা ক লিউ प्रकत, इवा दे, ओर “प्रमाण” शब्द से तकंशा सत्र आंभाीदित हुआ है । याज्ञवल्क्य स्मृति मेँ ज्ञान एप धर्म के मूलस्वहूप चतुर्दशाफ्धाओं7 में मीमीताशा सत्र को गणना की गयौ ढै । यही कारण है कि मौमाधाशा सत्र का वाक्याथ निर्णय प्रसका |». শ্নীনা্না বক प्तकंः तथवेदन्रमृदभव: , नीऽतौ वेदो नमाप्रप्त काण्ठाद्दिनच्णा म्द । ^ | न्याय वाणलाणटी०प०-६। 2~ “पुराणन्यायमोमा ता धर्मा स्वाक्हाी मी भरता: वेदाः स्थानानि सिद्याना! धर्मक््य च चपुर्दरा 1 (यात्र0 स्मृति आचाराध्याय,रलोक-5 ॐ “प्रवीत्तवानिवृील्तवाँ नित्येन নুলকল নাঃ शासनात्‌ शंतनाच्चेव शा्त्रीमल्यभिधीयते । (शलो०वा ८शब्दपरिच्छेद | रलोौ 0-4 |




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