वैदिक धर्म की विशेषता | Vaidik Dharma Ki Visheshhata
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.19 MB
कुल पष्ठ :
85
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ वैदिक धर्मकी विशेषता । पंथी मनुष्योंमेंभी इन्हीं गुणोंका विकास होनेसे मनुष्यव्वकी उन्नति हो सकती है । वैदिक धर्मेके ये तीस सनातन अटल और सावभोसिक सिद्धांत हैं । पंथ मत और पक्षामिमानसे रहित ये तीस वेद्िकि सत्व हैं । इसीको सनातन वैदिक धर्म कहते हैं । यहां आग्रह या दुराग्रहके लिये स्थान नहीं है अन्य मतोंके देषका यहां झगड़ा नहीं हे दाखायथें कि इंष्या ढ्वेषकी यहां जरूरत नहीं यहां केवल मनुष्यत्वके विकासकी इृष्टि है जो इन सिद्धांतोंको अपनायेगा वह विना झुद्धि संस्कारकेमी सनातन धर्मी ही हैं छोग उसको वैसा मानें या न मानें । एक बात अंतमें कहनी है कि १ सनातन धर्म वैदिक घर्मके अंदर पूर्ण रूपसे है परंतु २ वेदिकधर्म सनातन धर्ममें पूर्ण रूपसे नहीं अंतभूत हो सकता । सनातन धरमके उक्त लक्षण देखनेसे इस बातका स्तयं पता छग सकता हे । सनातन धर्मके पूर्वोक्त तत्वोंसें मानवी धमेके सामान्य ओर व्यापक तत्व हैं । परंतु इनके अतिरिक्त ऐसे विशेष तत्व हैं की जिनका अंतर्भाव उक्त लक्षणोंमें नहीं हो सकता । राजा प्रजाके कतेव्य ख्रीपुरुषके कर्तव्य भाइईभाईके कर्तव्य आदि हजारों ओर लाखों ऐसीं बातें हैं कि जिनका पूर्णतया ओर पूर्णरूपसे अंतभाव सनातन धमेके पूर्वोक्त तत्वोंसें नहीं हो सकता । इन सब तत्वोंका अंतभांव वेदिक घममे पूणतया है । इसलिये ऊपर कहा है कि सनातन धर्म पूर्णतया वेदिक धघर्ममें है परंतु वेदिक धर्म पूणतया सनातन धर्मके अंदर नहीं है । जिस प्रकार भासन और श्राणायाम योगमें अंतभ्रूत होते हैं. परंतु संएर्ण योगसाघन जासन प्राणायामोंमें अंतभूत नहीं हो सकता उसी प्रकार यहां समझिये । इसप्रकार सनातन धर्मका वास्तविक स्वरूप हे । और वेदिक धर्मकी विद्योषता हे । पाठक इसको अपनी आंतरिक दृष्टिसे अवदय सोचें विचारें और इसकी अपूर्वताको जानें । सनातन धघर्मके मूरू सिद्धांतोंकी सार्व- मोमिकतासे दी वैदिक घर्मकी श्रेष्ठताका ज्ञान हो सकता है । इसी लिये इसको मानव धघम्मे कहते हैं ।
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