रमा, परिणीता ( शरत साहित्य भाग 12 ) | Rama, Parinita ( Sharata Saahitya Part 12 )
लेखक :
धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh',
रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma,
सरत चंद्र चट्टोपाध्याय - Saratchandra Chattopadhyay
रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma,
सरत चंद्र चट्टोपाध्याय - Saratchandra Chattopadhyay
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
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धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
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रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
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सरत चंद्र चट्टोपाध्याय - Saratchandra Chattopadhyay
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृश्य पहला अक दर
[ रमेदाका प्रवेश । |
रमश--( गोविन्द गागुलीसे विनयपूवक ) अच्छा, आप आ गये !
गोविन्द --भइया, आंवेंगे क्यो नहीं ! यह तो अपना ही काम ठहरा रमेश)
[ नेपथ्यमे किसीके खसिनिका डब्द । चार-पाँच लड़कों और लड़कियोंको
लिये हुए खेसिते खौसते 'घर्मदास चटर्जीका प्रवेश । उनके कन्वपर मेला दुपट्टा
पड़ा है । नाकके ऊपर एक जोड़ी बेंगनकी तरह बड़ा-सा चइ्मा लगा है जा
पीछेकी तरफ डोरीस बेंघा है । सिरके बाल बिलकुल सफेद हैं। मोछोके सफेद
बाल तम्ब्राकके घुएंसे तँबेके रंगके हो गय हैं । आगे बढ़कर थोड़ी देर तक
रमदोक मुंहकी ओर देखेत हैं आर तब बिना कुछ कहे-सुने राने लगते हैं । रमेश
पहचानता ही नहीं है कि ये कोन हें । लेकिन जो हों, वह घबराकर उनका हाथ
पकड़ लेता है। उसके हाथ पकड़ते ही-- )
घमदास--( रोकर ) नहीं बेटा रंमण, मुझ स्वमरम भी इस बातका ध्यान
नहीं था कि तारिणी इस तरह दम लोगाको घोाखा देकर निकल जायगा । लेकिन
मेरा भी एस चटर्ओी वंदामे जन्म नहीं हुआ है जो किसीके डरसे अपने मुँहस
काई झूठी बात निकार्दू। तुम जानते हो कि जब में यहाँ आ रहा था तब
रास्तमें तुम्हारे सगे तायाके लड़के और तुम्हारे भाइ वेणी घोषालके मुंहपर मं
क्या कह आया ? मेंने कहा कि रमेश जैसे श्रादका इन्तजाम कर रहा है वेशा
श्राद्ध करना तो बड़ी बात है, इस तरफ उस तरहका श्राद्ध आज तक फिसीने
आऑखिसे भी न देखा होगा । भइया, मेरे बांरमें बहुत-से साठे आ आकर तुमसे न
जाने कितने तरदकी बातें कहेंगे । लेकिन तुम यह बात निश्चय समझ रखना कि
यह घर्मदास केवल धघर्मका ही दास है, और किसीका नही ।
[ इतना कहकर वे गोविन्दके हाथसे हुका लेकर एक कद
खींचत हैं ओर तुरन्त ही जारसे खॉसिने लगते हैं । )
रमेश--नहीं नहीं, भला आप भी कैसी बातें करते हैं --
[_ उत्तरमें घर्मदास बड़बड़ाते हुए न जाने क्या क्या कह जाते हैं, लेकिन
खॉसीके मारे उसका एक अक्षर भी किसीकी समझमें नहीं आता । सबस
पहले गोविन्द गांगुली ही इस घरमें आये थे, इसलिए नये जमींदारकों अच्छी
अच्छी बातें समझाने-बुझानेका सुयोग सबसे पहले उन्दींको प्राप्त होना चाहिए,
था । लेकिन जब उद्दोने देखा कि मेरा यह सुपरोग नष्ट होना चाहता है, तब वे
जल्दीसे उठकर खड़े हो जाते हैं । ]
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