Yahi Sach Hai by मधुकर - Madhukar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यही सच है ए] १३ वाज़ हैं। अननी, यह डिप्टी साहव का ही बेटा है ? मेरे सिर पर हाथ रखकर कहो तो*** डी होपफ''फ्फू ''फी'* ही ही” । दो पाटलिपुत्र”* अजीमावाद “पटना । हजारों वर्षों से यहाँ राज- मागें हैं, जन-मार्ग हैं, गलियां हैं । छोटे-छोटे मुहल्ले की गलियाँ जन-माग से मिलती हैँ, जन- मार्ग की अध-विकसित सड़कें राज-मार्ग से मिलती हैं । जेसे सड़कों का यह सिलसिला भारतीय समाज का प्रतीक हो । जो गली मेरे मुहल्ले में आती है, वह पत्थरों की ईटों से बनी है। यह गली चार फीट चौड़ी है। पत्थर की ईटे सिर उठाने लगी हूं। नुवकड़ पर डॉक्टर संजय का घर है । फिर मेरा घर है, और घर हैं भीर-भर धर हैं। इस गली में ठोकरें लगती हैं। पेरों में ठोकर लगती है; अनगढ़ पत्थर हैं। नाक में ठोकर लगती है; दोनों ओर की नाजियों में दुर्गन्घ वहती है। मन में ठोकर लगती है, चलने-फिरने वाढे फिकरे, वोल, सीटियों, धवके और गालियों के उस्ताद हूँ । वीस वर्ष पहले यह मुहुल्ला वसा । तीन-चार घर चाठुओं के चसे, फिर घासी-कहारों ने जनसंख्या बढ़ाई । पता नहीं हक वहाँ दया सोचकर बनाया गया ?




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