भ्रम विध्वंसनम् | Bhram Vidhvansnam
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पूज्य श्रीडाठ गणीके अन्तर अए्रम फट पर वत्तंसान समय मं श्रीकालूगणी
मद्दाराज विराजते हैं । जिम मनुष्यों ने आपका द्शेन किया होगा वे अवश्य ही निष्पक्ष
रूप से कहेंगे कि आपके समान वाउव्रह्मचारी तेजस्वी और शान्ति सूत्ति इल समय
में और दू्रा कोई नहीं है। आपकी मूत्ति मड्ूठ मयी है अत: आपने लिख समय
से शासन का भार उठाया है तभी से इस समाजकी दिन प्रति दिन उन्नति ही दो
रद है। आपके अपूर्वें पुर्य पुज् को देख कर अनेक नर' नारी “'मद्दाराज तारो-
महाराज तारों” इत्यादि असडुय कारूण्य शब्दों से दीक्षा श्रदण करने के लिए प्रार्थ-
ना कर रहें हैं तथापि आप उनकी विनय, क्षमा, पूर्ण वैराग्य कुलीनता, आदि
गुणों की जव तक भले प्रकार परोधा नहीं कर लेने हैं दीक्षा नहीं देते । आपकी
सेवा में सर्चदा ही नाना देशों से आये हुए जनेक उध्च कोटि के मनुष्य उपस्थित
रहने हैं । और आपके व्याख्यानासत का पान करके छत छृत्य हो जाते हैं। आपने
समस्त जिनागम का भले प्रकार अध्ययन किया है यहद कहना अत्युक्ति नहीं होगा
कि यदि ऐसा शुण चाला साधु चौथे आारे में होता तो अवश्य ही केचलज्ञान उत्पन्न
हो ज्ञाता । भाप संस्कत न्याकरण काव्य कोप आदिक विधिध विपयों में पूर्ण
विदान, हैं । भौर व्याकरण में तो विशेष करके आपका ऐसा पूर्ण अनुभव हो गया
है कि जैंच व्याकरण सौर पाणिनि आदि व्याकरणों की समय २ पर आप घिदेष
समालोचना किया करने हैं । कई संस्छ्त के कवीश्वर और पूर्ण विद्वान, आपकी
बुद्धि विठक्षणता को देखकर आपकी कीतिं ध्वज्ञा को फहराते हैं । और दर्शन करके
गतिशः छुतार्थ होते हैं । यदद ही नद्दीं आपनें वैष्णव धर्म्मवलम्वी गीता भादि ग्रन्थों
का भी अवलोकन किया हुआ है । और अन्य सम्प्रदायकी भी भली बातों को आप
सद्प स्वीकार करते हैं। जाप अपने शिप्य साघुओकों खंस्कत भी भले प्रकार
पढ़ाते हैं । आपके कई साधु विढ्ानू और संस्कत के कवि हो गये हैं।
आपके शासन में विद्या की अतीच उन्नति हुई है। आपका ऐसा क्षण सात्र भी
समय नहीं जाता जिसमें कि विद्या संचन्धी कोई विषय न चलता हो ।
आपकी पत्च मद्दावुत ट्ढता की प्रशंसा सुनकर जैन शास्त्रोंका 'घुरन्घर
चिज्ञाता घर्मन देश निवासी डाकुर दर्मन जैकोची आपके दुशनाथं लाड़णूं नामक
नगर: में आया और आपसे संस्कत भाषा में चार््तालाप किया आपके सुसार-
विन्द से जिनोक्त सूत्रों के उन गम्मीर विपयों को खुनकर जिनमें कि उसको श्रम था
नति प्रसन्न हुआ ! और कहने लगा कि मद्दाराज ! मैंने आचाराज के मंप्र॑जी
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