आलोचना के प्रगतिशील आयाम | Alochana Ke Pragtisheel Aayam
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)18 : ञालोचना के प्रबतिशील बायाम
ये सारी बातें शाववादी दाशंनिकता के आवरण मे वस्तुत: उन आधुनिकतापादियों
मी चातें हैं, जिनके लिए चाहरी वास्तविकता का कोई मूल्य नहीं है। लेनिन का
उक्त सिद्धात्त बाह्य वास्तविकता का अवमूल्यन करने वाली हर विचारघारा पर
श्रहमार करता है, तथा इस बात पर आग्रह करता है कि रचनाकार सामाजिक
विकास के दस्तुनिप्ठ नियमों के तहत उभरने वाली बाहरी वास्तविकता को उसकी
प्रतिनिधिकता में उसके सारतत्त्व के साथ पहचाने तथा उसकी संगति में अपनी
कला में उसके स्वरूप को कला रचना की अपनी विशिप्टता के वीच चित्रित करे!
रचना के अन्तर्गत चित्रित वास्तविकता दाहरी वास्तविकता से अलग न होकर
उसी का केसात्मक रूप होती है । वह उसकी प्रतिक्ृति न होकर भी उसी का
प्रातिनिधि रूप होती है । लेनिन इस बात के प्रति भी हमें मुखातिव करते हैं कि
कला सौत्दर्यवोध के साथ-साथ हमें वास्तविकदठा का संज्ञान भो कराती है, कि
उसके अन्तर्गत वस्तुगत यथा की सच्चाई दस रूप में उभरती है कि उसके माध्यम
से हम न केवल अपने समय भर समाज को पहचान पाते हैं, उसे बदलने को दृष्टि
भी पाते हैं । तोल्सतोय के 'युद्ध और शान्ति” उपन्यास को इसी शान्ति का दर्पण
उन्होंने इसी अर्थ में माना है ।
माहित्य के विचारधारात्मक महत्त्व को पूरी स्वोृति और उसे पूरी अहमियत
देते हुए भी, सवेहारा के हित में साहित्य को पन्नघरता को पूरी हिंमापत करते
हुए भी, साहित्य को सामाजिक वदलावं के लिए संपर्परत ताकतों के हाथ का
हथियार कहते हुए भी लेनिन साहित्य और कला की अपनी विधिप्ट प्रति,
उसके अपनी विशिप्ट रचना नियमों और उसकी सापेझ् स्वायत्तता को एक क्षण
के लिए भी नही शुलते, वरन् उन्हे रेखसकित करते हैं । साहित्य एवं कला संम्दग्धी
उनके विचार इस नाते भो विशेष अ्थ॑वान हैं कि लेनिन ने उन्हे वास्तविक-जीवत
स्थितियों के वी च से पाया है । माकमं और एंगेल्स को कला तथा साहित्य सम्बन्धी
अवधारणाएं लेनिन को व्याब्याओ के अन्वर्गेत अपनों समूचो ऊर्जा के साथ व्यक्त
हुई हैं तथा चुर्जुआ सोत्द्यंशास्त्रियों के लिए सबसे कठित घुनोतो सावित हुई हैं ।
लेनिन के साथ ही इस ऋ्रस में हम प्रसिद्ध साक्संवादी कला विचारक
लूनाचरस्की का कुछ जिक्र करना चाहेंगे । सूनाचरस्की के साहित्य और कला
सम्बन्धी विचार इस अर्थ में विशेष यूल्यवान हैं कि अक्तूबर श्राति की सफलता के
उपरान्त सोवियत रूस की नई रचनाशीलता के सामने बाई नई चुनौतियों के वीच
वे सामने आए । लूनाचरस्की पर निश्चित रूप से प्लेखानोव के विचारों की
गहरी छाप है, फिर भो, आगे चलकर माक्स' ओर एंगेल्स के सौन्दर्यशास्त्रीय
चिस्तन को प्लेडानोद की समाजशास्त्रीय बवघारणाओं की तुलना में उन्होंने
अधिक महरव दिया और सबसे महत्त्वपूणं काम यह किया कि उन्होंने साहित्य
समीक्षा के कुछ बहुत ठोस प्रतिमानों को सामने रखकर समकालीन समीक्षा
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