शुक्ल - समीक्षा | Shukl Samiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड्द्) दर्शन तथा मनोविज्ञान से सम्बन्धित हैं श्रौर कुछ का विपय प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति से सम्बन्धित है । पहले प्रकार के अ्रचुवादों में सर-श्रॉलिमार लॉज के एक लेख के झाधार पर शुक्लजी का श्रनुवाद “श्रख्ण्डत्व” मिलता है; डा० ब्राउन की *फिलासफी श्राफ ह्यमन माइंड” के श्राघार पर “सदाचार और उत्तम प्रकृति”, हरवर्ट स्पेन्सर के “प्रोग्नस--इट्स लें। ऐण्ड काजेज” पर लिखा हुम्रा “प्रगति व उन्नति, उसका नियम शोर निदान” मिलता है । दूसरे प्रकार के श्रनुवादों में “इनसाइक्लोपी- डिया ब्रिटेनिका”' के आधार पर शुक्लजी के श्रनुवाद “पारस का प्राचीन इतिहास”, “प्राचीन भारतवासियों की ससुद्र यात्रा”, उपलब्ध होते हैं । “डॉन” (080) पत्रिका में प्रकाशित श्री हाराणाचन्द्र चकलेदार के लेख का झतुवाद प्रोफेसर कुप्ण स्वामी श्रायंगर के लेख के आधार पर “भारत के इतिहास में” श्रौर डा० राजिन्द्रलाल मित्र के लेख के श्राघार पर “प्राचोन भारत- वासियों का पहिरावा” श्रतुवाद सिलता है। इन लेखों के भ्रतिरिकत श्राचायें शुक्लजी ने कुछ देन, शिक्षा, इतिहास श्रौर संस्क्रति-सम्वन्धी पुस्तकों के भी अनुवाद प्रस्तुत किए हैं । जमंन दार्शनिक हेगेल के “'रिडिल राव दी यूनिवर्स” का अ्रनुवाद “विद्व-प्रपंघ”, “राज्यप्रवन्ध शिक्षा”, राजा सर टी० साधवराव के “माइनर हिण्ट्स” का श्रनुवाद है । स्माइल के “प्लेन लिविग ऐण्ड हाई थिकिंग” के आ्राधार पर “श्रादजष जीवन” प्राप्त ता है ! डा० इवानवक के “मेगस्थनीज़ 'इंडिया” का झसुवाद “मेगस्थनीज़ भारतवर्षीय वर्णन” नाम से प्राप्त होता हैं साहित्यिक क्षेत्र में जोसेफ एडिसन के “ऐस्से झॉन इमेजिनेशन” का अनुवाद “कल्पना का अनुवाद” रूप में प्राप्त होता है तथा सर एडविन झारवल्ड की “दि लाइट श्राव एशिया” का पर््यानवाद




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