भारत की उपज | Bharat Ki Upaj

Bharat Ki Upaj by रमाशंकर - Ramashanker

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घानकी खेतों और उसका व्यवसाय ७ लय, पिन गिकर सिर चित िलिटीभिजीलक #ि# कि भी पी 1 कक न की की न की के उनके दलाल कहते हूं , खलिहानोंमें छाया जाता है। जो मिल अपनी-अपनी नाव या जहाज रखती है; वह फसलके शुरूमें ही अपने दलाठको रुपया दे देती है। दढछाठ या खरीदनेवाला ज्योंही रुपया ओर नाव पाता है चह शीघ्र ही देहात और खेतोंमें जाता हैं, घान खरीदत। हैं और तोलनेके लिये मिलोंमें ले आता है । तोलनेमें बड़ी जल्दी की जाती है । तब धान गोदाममें रखा जाता हे और घीरे-घीरे रेठ द्वारा निर्यातके लिये मुख्य-मुख्य केन्द्रोंपर भेजा जाता है । बहाल, बिहार, उड़ीसा तथा आस-पासके प्रान्तोंमें सारे न्रिरिश भारतकी उपजका ४७ प्रतिशत घान उपजता है। ये सब कलकत्ते से विदेश मेजे जाते हैं । युद्धके पहले मौरिशश और लड़ामें ही चावल भेजा जाता था । किन्तु आाजकठ क्यूबा, वेस्ट इण्डीज और दृक्षिण अफ्काके साथ बड़ जोरोंसे चावलका व्यापार चल रहा है | हर प्रकारके चाचलके निर्यातपर चुगी छगाई गई हैं । इससे गव्नमेण्टको ११०५०००० रु० प्रति साल चुगी वसूल होती है । घानका वार्षिक निर्यात ५०००० टन है जिसका अधिक भाग लड्डा जाता है। चावल श्रेट ब्रिटेनमें हर साल ११०५००० टन जाता है जिसका दाम करीब-करीब ११०५००००० रुपया, दूसरे देशोमें ६१४००० रन चावल भारतसे बाहर जाता है जिसका दाम करीब-करीब ८:६०४००००० रुपया होता है । सहवाग तानतकिविएं नदतरमकार लपतवमागाता,




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