जैन साहित्य का बृहद् इतिहास | Jain Sahitya Ka Brahad Ithihas

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Jain Sahitya Ka Brahad Ithihas by गुलाबचन्द्र चौधरी - Gulabchandra Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकरण : प्रास्ताविक जैन काव्य-साहित्य मे हमारा तात्पर्य उस विद्या साहित्य से है जो काव्य- गास्त्रमम्सत पिधि-विधान को ययासम्सव सानकर सहायाव्य, कथा ( प्राकृत मे काव्य को कथा नाम से कहते है ) तथा काव्य की अनेक विधाओ में अथात्‌ दृक्य- काव्य एव श्रव्यकाव्य--ठास्त्रीयकाव्य, गद्यकाव्य, चम्पू काव्य, दूतकाव्य, गीतिं- काव्य आटि के रूप म लिग्वा गया हो |) इसे हम प्रमुग्व तीन उ्ण्डों मे विभक्त कर चिवेचन करेंगे । पहले खण्ड मे पौराणिक मद्दाकाव्य झोर सभी प्रकार की कथाएं रहेगी । द्वितीय खण्ड से ऐतिहासिक सादित्य यथा ऐतिहासिक काव्य, प्रबन्ध-साहित्य, प्रगस्तियाँ, पट्टाचल्याँ, प्रतिमा लेख, अन्य अभिनेगय, ती यमालाएं, विजप्तिपचादि का बिवेचन होगा । तृतीय खण्ड से लल्ति वाद्य अथात्‌ गास्त्रीय मददाकाव्य, गद्यकाव्य, चम्पू , नायक आदि अछकार तथा रस दौली पर ल्खिा हुमा साहित्य समाविप्र होगा । यदद विद्याल साहित्य अनेक भाषाओं में ल्खि गया है पर प्रस्तुत भाग में मापा की दृष्टि से हमने प्राकृत तथा सस्कृत में उपलब्ध को दी ग्रहण किया है । अपगभ्रश या अन्य भापषार्भों में उपलब्ध इस प्रकार का साहित्य अगले मार्गों का विपय होगा । सवप्रथम जैनों के परम्परा सम्मत वाब्मय में 'काव्यसाहित्य' की क्या स्थिति हैं यह लान लेना परमाबश्यक है । भगवान्‌ महावीर के समय से लेकर विक्रम की २० वीं शताब्दी के अन्त तक लगभग २५०० वर्षों के दीघकाल मे जैन मनीषियों ने प्राकृत और सस्कृत के जिस घिपुल वाब्मय का निर्माण किया है उसे सुविधा की दृष्टि से, आधुनिक विद्वानों ने, पुरानी परिभापारओं का '्यान रखकर प्रमुख तीन मार्गों में बॉटा है पहला आागमिक, दूसरा अनुआगमिक और तीसरा आगमेतर । सागमिक साहित्य आज हरे आचाराग आदि ४५ सागर्मो तथा उनपर लिखे विशाल टीकासाहित्य- नियुक्ति, चूर्णि, माष्य और टी कार्मों के रूप में उपल्ब्घ है । अनुआगम साहित्य दिगम्बरमान्य शौरसेनी अआगर्मो--कसायपाहुड, पट्खण्डागम तथा कुन्दकुन्द के अन्थों के रूप मैं पाया जाता है । इन दोनों प्रकार का साहित्य इस चहददू इतिहास के पूव मार्गों मैं प्रकाद्यित हो चुका है ।




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