समग्र ग्राम सेवा की ओर | Samgra Gram Seva Ki Aur

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Samgra Gram Seva Ki Aur by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रद ) परियतन; कौन सभ्य दे ! 2 १७८ निरिचंत प्रयोग की चेश ... .-...... ,..१०७-१२० [ आम-कार्य की योजना, समग्र दृष्टि की श्यावश्यकता; रासना की विशेषताएं ; धुनाई-कताई श्रौर राश्रिपाठशाला; - सूत न खरीदने की नीति की निष्फलता; स्ररियों का शिक्षण शरीर सुधार ] हि १८. रासना की रोप कथा. ... मर «रत है ०-१ ३रे [ रासना पेन्द्र का श्रन्त 3 १३. सेवा का निश्चित कदम ..« वररन१र३ [स्वास्थ्य का दिवाला; गाँव में विश्राम का निश्चय; रणीवाँ का चुनाव ] २०. प्राम-प्रवेश का तरीका १२९६-१३ २ [ ब्याख्यानवाजों के सम्बन्ध में गाँववालों के विचार; दमारे रददन-सदन की देख-रेख: दमारा तक; चर्खा चला; गाँव में वद्दीं कते सूत की पदली साड़ी 3] २१८ समग्र प्रामसेवा की भर नम १३९-१३७ [ रणीयाँ की चस्ती, बहुत पिछड़ा गाँव, दकियानूसी दिमाग पर प्रेम श्रीर श्रद्दा से भरा इृदय; आमसेवा का श्राधार-विन्दु, निराशा इमारें गलत दृष्टिकोण का परि्णिम, दस कितने दुबल हैं! ] र३, सफाई की योजना १ ३८-१४ ने दे, घनिषप्ट सम्पक का छाम कहे धप [ घालोचुनाधों का श्रन्त, चिकित्सा फे सम्बन्ध में विचार चेघ्न-विरतार थे शुभ दरय र्दादछर्दग की अोर बध्दनशु [बुनाई का धरम; शुभ परियाम, पक विधया म्ादाणी पु साइस ये




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