तुम्हारे लिए | Tumhare Liye
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.22 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)18 / तुम्हारे लिए हृतप्रम सा मैं देर तक अकारण खड। रहा बस सात बजे जाती है इस समय सात दजने में दो मिवट हैं फिर बस समय से पहले कसे निकल गई में भूल गया था कि मेरी घडी भी गलत हो सकती है । वस का समय पौने सात भी तो हो सकता है। प्लेस की बोर जाने वाली हर बस के भीतर मैं उचक-उचककर झाक रहा था यह जानते हुए भी कि तुम इनमें नही हो सकती । लौटते समय मन भटकता रहा--तुम्हारी वस हनुमानगढी पहुंच गयीं होगी । अब चोल चक्कर के मोड पर घूम रही होगी । अब वहिदयायान ज्योलीकोट--काठगोदाम हे भगवान पश्चिम के क्षितिज पर सध्या धीरे धीरे तिर रही थी । रंग बिरगा घूघ सा चारो ओर अबीर को तरह बिखरा हुआ था । सामने खड़ा वजरी का स्लेटी पहाड़ कट-कंटकर नीचे सरक भाया था । एक रीता पुराना ट्रंक बजरी भरने के लिए हथलीनुमा उम पहाड़ी पर चढ रहा था--मथर गति से-- हाफता हुआ । पहाडी के ऊपरी भाग की नगी चट्टान बहुत कठोर लग रही थी--आडी तिरछी कटी--एकदम छिछली । नुकीली। उसकी चोटी के अन्तिम सिरे पर देवदार के हरे भरे वुक्षो का झुरमुट था भासमान को छूता हुआ । डूबत सूरज की अन्तिम किरणें उनकी नुकीली चोटियो पर रह रह कर झाक रही थी । नीचे की ढलवा पहाड़ी पर चीड के छितरे वक्षो का अन्तद्वीन फलाव । उस पार कोई गाव सा दिखलाई द रहा था । घरों की सफेद दीवारें साफ झलक रही थी--शायद छुर-पाताल होगा । चोल चक्कर के उस मोड पर पता नहीं मैं कब से बेंठा था ? साप की तरह बल खाते घुमावो को अचरज से देख रहा था । काई गाडी क्षण भर झलक दिखाने के वाद सहसा ओोझल हो जाती । तभी दुसरे मोड पर एक गौर झलक फिर गायब कारो बसो की यह मायमिचौली देखने के लिए नहीं पठा नहीं कया मैं इघर निकल आता ऊब् भी तनिक अवकाश मिलता । यहाँ एकान्त रहता निपट अकेलापन 1 ये मोड य पह्ाडिया--उस पार क्षितिज तक फैला घुषला घुघला जादुई दुश्य पहाड और मदान के सीघ-
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Balram
at 2020-02-01 07:00:33