धर्म - व्याख्या | Dharm-vyakhya

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Dharm-vyakhya by शंकरप्रसाद दीक्षित - Shankar Prasad Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ नगर घम नगर, प्राम घर्म और नगर धर्म का उसी तरह सम्वन्ध है, जैसे शरीर श्औौर दिमाग का । श्रर्थात्त यदि मामोण शरीर के समान हैं, तो नागरिफ मर्तिप्क के समान ।. सस्तफ यद्यपि शरीर से सूँचा है, किन्तु शरीर का सारा कॉम सी से होता है। यदि योगायोग से मस्तक पागल दो उठता है, तो वह श्वपने साथ” साथ सारे शरीर को भी ले इवता है. । 1. श्ाज नागरिया की यद्दी दूशा, हो रददी दै। उद्दे श्वपनी स्वत की रक्षा का ध्यान नहीं है, तो वे प्रामीणों की रक्ा क्या फरेंगे ? जिस प्रकार मस्तक के विगडने से शरीर की दानि होती है, उसी त्तरदद राज नागरिकों के विगडने से प्राम धर्म भी न दोता जा रददा है । श्वपना घर्म समझ ,फर उसे पालना शरीर अपने 'माधित प्राम-धर्म की भी रक्षा करना, नागरिकों का कर्व्य है| आप लोग, मुख श्राचाय कहते हैं श्रीर में एफ तरफ यैंठ जाऊ, व्याख्यान न टू; तो 'मप क्या कहेंगे ? यहीं न, कि कोई दूसरे छोटे-सन्त बैठ जायें, तो काम 'वल सकता है, परन्तु 'आपके बैठने से काम नहीं चल सकता श्यापका यद्द कदना डीक दे, क्योंकि श्राप लोगों ने मुमे छापने धर्म था आम्णी नियत स्या है। ' 'मत यदद श्ायश्यक है, कि में आप लोगों को ठपदेश देकर '्पने फरोव्य का पातान करूँ 1 ठीक इसी प्रकार




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