जैन धर्म का मौलिक इतिहास तृतीया भाग | Jain Dharm Ka Maulik Ithihas Tratiya Bhag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शकीय श्रमण भगवान्‌ महावीर के शासन के कृपा प्रसाद से जैन धर्म का मौलिक इतिहास ग्रन्थमाला के इस तीसरे भाग को सुविज्ञ एव सहृदय पाठकों के कर-कमलो मे प्रस्तुत करते हुए हमे परम सन्तोष एव गौरव का श्रनुभव हो रहा है। इतिहास का प्रथम भाग १९७१ मे और द्वितीय भाग १९७४ में प्रकाशित हो चुके थे । इसे देखते हुए तृत्तीय भाग के लिए जिज्ञासु पाठकों को पर्याप्त समय तक प्रतीक्षा करनी पडी । इसके लिए हम क्षमाप्रार्थी है। इतिहास के दोनो भागों का साहित्यिक जगत्‌ मे श्राशातीत स्वागत हुआ, इससे निश्चय ही हमारा उत्साह बढ़ा । इसी उत्साह से प्रेरित होकर तृतीय भाग के भालेखन का कार्य बडी तत्परता से प्रारम्भ कर दिया गया था । एतद्थे सर्वप्रथम मथुरा के सग्रह्मालय से एतदुविषयक सामग्री सम्रहीत करने का प्रयास किया गया । वहा से यथेप्सित सामग्री प्राप्त हुई, जिसका महत्वपूर्ण उपयोग इस ग्रन्थ प्रशयन मे किया गया । तदनन्तर राजस्थान प्रदेश के ही भ्नेको ग्रन्थागारो एव ज्ञान भडारो से सामग्री एकश्रित की गई । इनमे सर्वाघिक महत्वपूर्ण सामग्री लब्बप्रतिष्ठ इतिहासज्ञ प्यास श्री कल्याण विजयजी महाराज साहब के जालोर नगरस्थ ज्ञान भडार से हमे प्राप्त हुई, जहा हमारे विद्वान्‌ लेखक महोदय श्री राठौड़ ने स्वय काफी समय तक श्रहमनिश श्रथक परिश्रम करके उपयोगी ऐतिहासिक सामग्री का भ्रालेखनात्मक सकलन किया । प श्री कल्याणाविजयजी महाराज सा का इंस कार्य मे उन्हे हादिक सहयोग एव बहुमूल्य परामर्श भी मिला । महावीर की विशुद्ध मुल परम्परा के कति- व अज्ञात स्रोत सकेतात्मक लेखो के रूप मे प श्री कल्याणविजयजी म सा की हस्तलिखित दैनन्दिनियो के सप्रह से उपलब्ध हुए । इस शोध काल मे पन्यासजी श्री के सग्रह्म मे “तित्योगालि पइननय” नामक श्रन्य की एक भ्रति प्राचीन हस्तलिखित प्रति मिली जिसके कतिपय स्थलों का सस्पा-




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