दान तथा अन्य कहानियाँ | Daan Tatha Anya Kahaniyan

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Daan Tatha Anya Kahaniyan by ऋषभ चरण जैन - Rishabh Charan Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दान १७ रमण घाव और मार की पीडा से चीखता था, रोता था जौर हाय- हाय करता था । आस पास रतनी भीड इक्टठी हो गई थी, पर कोई माई का लान उसका पक्ष लेकर हुकूमतराय से जवाब तलव करनेवाला न था । जो लोग रापसाहद के परिचित थे, दे उनसे प्रश्न कर रहे थे, उद्दे शात कर रहे थे, और उनके क्रोब का अतिरंजित कारण जानकर असहाय रमजू पर रोप प्रदान कर रहे थे । जब ज्यादा भीड इक्ट्ठी होती देखी, जौर कोध का खासा रखलन हो चुका, तो रायसाहब आगे वर्ठ । दिलखते हुए रमजू की तरफ किसी वा ध्यान न था। सब क-्संब आइचपर की मूति बने, सहमे में, आतक-पुण रायसाहव को निहार रहे या रामचद मे सवा र्पया ऐठनेवाला और ज्योतिप्रमाद की शिडवी खाने बाला स यासी भी चुपचाप भीड म खड़ा था ? भर थाडी टूर रह गया था किसी मे जावाज दी 'रायसाहेव 'रायसाहब ने पीछे फिरकर देखा--अनाथाश्रम का डेपुटेशन ! आवाज देनेवाला जगननाथ था । रायसाहव से भी उसका साधारण परिचय था । उसी बल वे आधार पर उसने जावाज दी थी । रायसाहब थम गए । डेपुटेरान के लोग गदन सुकाए, खद्दर के बुरता बी सीवन को टटोलत हुए आगे बढ़े । एक के हाथ म हडबिल थे, दूसरे ने रसीदबुर्षों ले रखी थी, तीसरे के पास थली और डॉने”न-वुक थी । जगनाथ खाली हाथ था । रज़-ढग देखबर रायसाहव ने बहुत वुछ अनुमान कर लिया । गुस्सा अभी पूरी तरह ात नही हुआ था । यह नए हमले की तैयारी दखी, तो त्यौरीो मे वल पड गए | फिर भी धमे रहे । डपुटेगन पास आया । सब ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया । माथे बी त्यौरो नप्ट किये बिना ही रायसाहव ने सिर हिलाकर अभिवादन वा उत्तर टिया। डेपुटेटान कुछ साक्ति हुआ । जगन्नाथ न व हां--'कहिए, आपवा मिजाज तो लच्छा है ?' 'रायस्गहब कुढवर चोले--“जो हा, नाप इधर वहाँ चले ?”




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