उपक्रमणिका | Upakramanika

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Upakramanika by ऋषभ चरण जैन - Rishabh Charan Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) विपय में वार्तालाप कर रहे होंगे 1--वहाँ से उन्हें जल्दी नहीं मिल सकतो 17 £ सम्भव है।? भनिस्यय है, सरथार, श्चौर मद्ाशय डि-फंवरास के साश् यदौ ोमा । वे काडण्ट-डि-मरविन्त फे साय रहते है, आअवश्य-ही किसी माटक की चर्चा कर रहे होंगे 1? “अच्छा, मद्दाशय डि-कण्डरसेद फे विपय में क्या फहते -यद्‌ तो ज्यासिति शौर गणित के परिदितर यै षते देर सक्ते १ “हाँ, वे किसी-न-किसी भहन विचार में मग्त हो जायेंगे, जय उन्हें होश आयमा, तो फम-स-कम राथ पटा देर्‌ तो १ चुकी ट्वोगी । रहे महाशय कगलस्तर, सो वे आजनबी आदस उन्हें वर्सेड के निमय-कायदों का ज्ञान नहीं; बस उनके लिये जरूर-ही इन्तज़ार करना पड़िगा 17 “ज्षेक ! तो तुमने मेरे सारे महमानों का वर्णन कर दिया! सिर्फ महाशय डि्टेवर्नी रद गये 1? “खिदमतगार ने झुककर कट्ठा--“जी हाँ, मैंने मद टेवर्नी का नाम इसलिये नहीं लिया, कि ये आपके पुराने दोप इसलिये शायद ठीक समय पर आजायें। मेरे खयाल में आपके महमानों के नाम हैं ।? “हीक; अच्छा, खायेंगे कहाँ 17 “खाने के बडे कमरे में १?




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