मिट्टी के आदमी | Mitty Ke Adami
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निवाण का परम पद
एक जैन मित्र ने एक दिन बड़े तपाक से कहा--' हमारे
देश के सब लोग भूल में हैं, बन्धु ! जो हमारे शासन को धमें-
निरपेक्ष कहते हैं । हमारे शासन का नाम चाहे जो कुछ हो, पर
हमारा शासन पुर्णांत: धार्मिक है, निरा अ्रनेकान्तवादी, जैन-
मतावलम्बी 1 '
केसे ?' मैंने आश्चयं से पूछा ।
'देखिये, उसने कहा--'्रनेकान्तवादियों की भाँति
उसका सूल नारा भी श्रहिसा है! '
मैंने कहा--'हाँ, आर ?'
_ श्रौर बन्धघु !' उसने कहा--'हमारे शासन का पहिले
एक शभ्रधिपति होता था, श्रब भ्रनेक अधिपति होते हैं; --पानी
का राजा श्रलग, बिजली का राजा अलग, श्रनाज का राजा
प्रलग, शिक्षा का राजा श्रलग, रोगों का राजा अलग 1 '
श्ौर ?' मैंने फिर पूछा ।
श्र, उसने उत्तर दिया-- “पहिले पुलिस झौर
अदालत जनता से अपना काम करने का पैसा माँगती थी,
अब इनके अतिरिक्त डाकखाना पैसा माँगता है, खजाना पैसा
माँगता है, रेल का बाबु पैसा माँगता है, इन्स्पेक्टर पैसा माँगता
है, डाक्टर पैसा माँगता है, इंजीनियर पैसा माँगता है; श्रौर
सुना हैं, भगवान जाने झूठ या सच, पर लोग श्रक्सर ऐसा कहते
मिट्टी के झादमी/१६
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