इष्टोपदेश टीका | Eshtopdesh Teeka
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१९)
एक मकान इसलिये बनवाया हैं कि निप्त किसीको -विवाइ भादि
व सर ढिसी कांयेके वास्ते मकानकी, आावश्यक्ता हो वह अपनों
कांय 'ठप्तमें कर ठे-। लख़नऊमें भापके- बहुतले मकानात व दूकाने
किराये पर चलती हैं भर आपका बहुत यश: ई.।..जनतकि बहुतसे
मापसके झगड़े.आप ही तय कर दिया करते थे | भाप श्रीगिरनारः
जी, शिखरजी भादि करीब २ सन तीर्थोकी यात्रा कर चुके थे ।
आपने अपने बड़े पुत्र लाला थरातीलालनीक्ा.. विवाह
' चखनऊमें ला० देगरीदापनी गोटेवालों ( सभापति, जैन सभा
लखनऊ: )की सुपुत्नीके साथ बड़ी धूमघामसे किया था । आपने
मरते समय दो पुत्र छोड़े थे निस्तमें १ का देहात हो गया ।
पके छोटे भ लाठा दुर्गाप्रतादजीफे है पुत्र व २ पुत्रियां
हैं। आपके चचा काका विश्वेश्रुनाधनीकि भी ! पुत्र लाला
निनेश्ादाप्तनी दें और २ पुत्रियां हैं। दृ्तरे चचा छाछा प्रभूदया
लनी अपना चिकन व कपड़ेका रुनगार अछग करते हैं उनके भी
१ पुत्र छा० सुपेरचदनी हैं।
वि+ सं० १९७१ में माघ शुक्क इको आपका ५९० वर्षेकी
भवस्थामें अचानक स्वगवाप्त हो गया, निससे आपके कुटूंवियोंको
तथा लखनऊ निवापियोंकों अत्यंत दुख हुआ |
भोपकी घमपत्नीने से ० १९७४ में 'अपने स्वर्गीय पतिकी
रपृतिपं जन सावंजनिक पुस्तकांखप स्थापित कराया,
नित्तकों जेन समान ठस़नऊ; अपने द्रव्यसे चला रही है। श्रीमाद्
बाबू अनजितप्रसादूनी वकीरू पुस्तकालय प्रबंधक कमेटीके सभापति
व ढाढा बरात्रीहागी मेत्री हैं। '.... -
संवत १९७५ में मिती कार्तिक वदी १९को आपके छोटे
पुत्र ज्ञानचदका ३ ९ . वषकी . अवत्थामें और उप्तके २ दिन बाद
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