साहित्य का मूल्याङ्कन | Sahithya Ka Mulyankan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahithya Ka Mulyankan by डब्लू ० बेसिल वर्सफोल्ड - W. Basil Worsfoldरामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

डब्लू ० बेसिल वर्सफोल्ड - W. Basil Worsfold

No Information available about डब्लू ० बेसिल वर्सफोल्ड - W. Basil Worsfold

Add Infomation AboutW. Basil Worsfold

रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

No Information available about रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

Add Infomation AboutRamchandra Tiwari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
८ सादित्यका मूल्याझ्न अनुसूति जीवनकी अनुभूतिसे सर्वथा भिन्न नहीं है । जब काव्यके सैंन्दर्यक भावन करनेके लिए. कोई लिदोष इन्द्रिय नहीं है और हम जिन दॉन्द्रियोंसे जीवन- की अन्व अनुभूतियोकों 'प्रहण करते हैं उन्हींसे क्राव्य-सौन्दर्यकी भी भावना करते हैं तो काव्यगत अनुभ्ूतिकों छोक-निरपेक्ष क्यों माना जाय ! सिचिडसका महत्व इस वातमें हैं कि उन्होंने मनोवैज्ञानिक आधारपर काव्यानुभूतिकों मेका नुभूतिके समकक्ष सिद्ध किया है । अस्तिस्ववाद (शिदडट पिंक तह को कला-सूजनका आधार बनाने वाछे प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक जाँ पाछ सात (680 पिकपा उघरातिठ, ह९०५-०) हैं। मनुष्यके सामने आज अस्तित्वका प्रदन इसलिए उठ खड़ा हुआ है कि युगकी याव्न्रिकता उसकी स्वतन्त्रताका हरण करती जा रही है । मदीनोंकी शेद्धिस मचुष्यकी दारीरिक एवं मानसिक दाक्ति कुण्ठित होती जा रही है। आजकी तथाकथित समताविधायक यान्त्रिकि सामाजिकता मनुष्यके जीवनकी सरसताक समाप्त करती जा रही हैं । हम जी रहें हैं किन्तु जीवनकी सार्थकताकों समझे बिना यन्त्रवत्‌ कार्य करते हुए जी रहें हैं। इसलिए प्रत्येक स्वतन्त्रचेता कल्मा- कारका धर्म है कि वह ऐसी कला-सष्टि करे जो विवेक-रहित-समता एवं यास्त्रि कताफे विरुद्ध मनुप्यकी निजता, बौद्धिक स्वतन्त्रता एवं सांस्कृतिक शार्थकताकी स्थापना करे । घर्तमान युगके प्रभावशाली कवि और समीक्षक श्री टी० एस ० इखियर (प'.3ि,ि1106, १८८८-) महोदयने कलाकी उच्चताका आधार अनुभूतिका निर्व्य- क्तीकरण (0.७]छाडणा को धरा) माना है । आपके अनुसार कंछाकारका मोक्ती मन उसके खा सनसे भिन्न है। इसलिए कला-कुति एक तटस्थ सूष्टि है । इख्यिट कछाकारकों परम्पराकें बीच रखकर देखना चाहते हैं । उन्होंने अपने विचायें से समीक्षा-जगतूकों बहुत प्रभावित किया है । उन्होंने एक प्रकार- से वलैसिकल चिन्तनकों पुनः प्रतिष्ठित किया है | इस प्रकार इम देखते हैं कि बीसवीं झातीमें काव्य-समीक्षाका क्षेत्र व्यापक हो गया है । उसमें बेविध्य, विस्तार और गहराई समीका समावेश लक्षित दोता है | वह्द क्रमश: बौद्धिक और मनोवैज्ञानिक होती गई है । उसके संघटनमें चिन्तन के अयेक स्तर और जीवनकी अनेक दृष्टियाँ कार्य करती हुई परिकक्षित होती हैं ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now